नई दिल्ली. देश के आठ प्रमुख राज्यों में पिछले दो वर्षों के दौरान विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सरकारों ने जनता पर Rs 67,928 करोड़ की कल्याणकारी योजनाओं (welfare schemes) की बारिश कर दी। पार्टी कोई भी हो सत्ता में बैठी सरकारों ने fiscal populism को अपने सबसे असरदार electoral weapon के रूप में इस्तेमाल किया है।
Maharashtra और Bihar सबसे आगे
इस सूची में सबसे आगे हैं महाराष्ट्र (2024) और बिहार (2025) दोनों ही जगह BJP-led NDA governments ने सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) को थामने के लिए कल्याणकारी योजनाओं के जरिए जनता को रिझाने की कोशिश की।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले महायुति सरकार ने माझी लड़की बहिन योजना और फ्री बिजली जैसी योजनाओं पर Rs 23,300 करोड़ खर्च किए। अब सत्ता में वापसी के बाद सरकार इन योजनाओं के वादों को निभाने में संघर्ष कर रही है। कई मंत्रियों ने माना है कि इस खर्चे की वजह से अन्य विभागों का बजट प्रभावित हो रहा है।
वहीं बिहार में जेडीयू के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने हाल ही में 19,333 करोड़ रुपये की छूट की घोषणा की है – जो राज्य का अपना कर राजस्व (खुद का कर राजस्व) 32.48% और कुल राजस्व का 7.40% हिस्सा है। यह पात्र आठ राज्यों में सबसे ऊँचा है।
Haryana और Chhattisgarh ने दिखाई मितव्ययता
इसके विपरीत, हरियाणा में पिछले साल चुनाव के दौरान BJP सरकार ने केवल 0.41% टैक्स राजस्व के बराबर नकद योजनाओं पर खर्च किया और फिर भी तीसरी बार सत्ता में लौटी।
छत्तीसगढ़ में भी, जहां कांग्रेस सरकार सत्ता गंवा बैठी, चुनाव से पहले केवल 0.66% टैक्स राजस्व ही कल्याण योजनाओं में खर्च हुआ था।
Jharkhand, MP और Rajasthan का पैटर्न अलग
झारखंड में JMM सरकार ने महिलाओं और बिजली बिल माफी योजनाओं पर टैक्स राजस्व का 15.95% खर्च किया और सत्ता में वापसी की।
मध्य प्रदेश में BJP सरकार ने चुनाव से पहले 10.27% टैक्स राजस्व Ladli Behna Yojana जैसी योजनाओं पर खर्च किया और 18 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद जीत दर्ज की।
राजस्थान में Congress सरकार ने Rs 6,248 करोड़ के कल्याण कार्यक्रमों (जैसे मुफ्त बिजली और स्मार्टफोन योजना) पर खर्च किया, लेकिन सत्ता गंवा दी।
Odisha और दक्षिणी राज्यों की स्थिति
ओडिशा में BJD सरकार ने Rs 2,352 करोड़ की योजनाओं पर खर्च किया, फिर भी मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अपनी लंबी पारी जारी नहीं रख पाए।
वहीं Telangana, Andhra Pradesh और Delhi में भी चुनावों से पहले कई घोषणाएं हुईं, लेकिन अधिकांश लागू नहीं हो पाईं — और सभी सत्तारूढ़ दल हार गए।
Women-centric schemes बनीं वोट की चाबी
इस पूरे खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा महिला मतदाताओं को ध्यान में रखकर शुरू की गई योजनाओं का है —
Majhi Ladki Bahin Yojana (Maharashtra) – Rs 13,700 करोड़
Mukhyamantri Mahila Rozgar Yojana (Bihar) – Rs 12,100 करोड़
Ladli Behna Yojana (Madhya Pradesh) – Rs 8,091 करोड़
इन योजनाओं की घोषणा ज्यादातर चुनाव से 6 महीने के भीतर की गई, जिसमें बिहार की अगस्त-सितंबर 2025 की घोषणाएं “last-minute electoral largesse” का नया रिकॉर्ड बना चुकी हैं।
नया ट्रेंड या संस्थागत रिश्वतखोरी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह Rs 67,928 करोड़ का प्री-पोल खर्च भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव दिखाता है — जहां पारंपरिक प्रचार की जगह direct benefit transfers (DBT) ने ले ली है।
वहीं आलोचक इसे “institutionalized bribery” यानी संस्थागत रिश्वतखोरी बताते हैं, क्योंकि सत्ता पक्ष सरकारी खजाने के दम पर मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है, जबकि विपक्ष के पास सीमित संसाधन होते हैं।
‘Revadi Culture’ पर दोहरी स्थिति
विडंबना यह है कि Prime Minister Narendra Modi खुद इस तरह की योजनाओं को “revadi culture” कहकर वित्तीय अनुशासन के खिलाफ बताते हैं — लेकिन अब BJP शासित राज्य भी इसी रणनीति पर चल रहे हैं।