शिमला. प्रदेश सरकार ने कृषक समुदाय को परम्परागत फसलों के बजाए नकदी फसल की खेती को अपनाने के लिए ‘डॉ. वाई.एस. परमार किसान स्वरोज़गार योजना’ आरम्भ की है. इसके साथ ही लोकप्रिय कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक कृषक समुदाय नकदी फसलें, विशेषकर बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए आगे आएं.
हिमाचल प्रदेश ‘फल राज्य’ के रूप में जाना जाता है
यह तो हम सब को ही पता है कि देशभर में हिमाचल प्रदेश पहले ही ‘फल राज्य’ के रूप में जाना जाता है. अब राज्य तेजी से बेमौसमी-सब्जी उत्पादन में एक अग्रणी राज्य बनकर उभर रहा है. कृषक समुदाय बेमौसमी सब्जी उत्पादन को बड़े पैमाने पर अपना रहा है. राज्य में सब्जी उत्पादन कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों से लेकर 4,000 मीटर ऊंचाई तक वाले क्षेत्रों में किया जाने लगा है. जिससे वर्ष भर यहां सब्जी उत्पादन संभव हो पाया है. इसी विशेषता के कारण यह प्रदेश अब सब्जी उत्पादन में देश का एक ‘प्राकृतिक ग्लास हाऊस’ के रूप में अपनी पहचान बना रहा है.
सदियों से अनाज की परम्परागत फसलों पर बल दिया जाता रहा है. ताकि सबको भरपेट अन्न उपलब्ध हो सके. लेकिन प्रदेश सरकार तथा कृषि विभाग द्वारा किसानों को उपदान दरों पर सामग्री उपलब्ध करवाकर संयुक्त प्रयासों से सब्जी उत्पादन एक कमाऊ नकदी फसल के रूप में बेहतरीन विकल्प बनकर उभरा है.
कृषकों को मिल रहे हैं अच्छे दाम
प्रदेश में कृषि-अनुकूल जलवायु है तथा बेमौसमी-सब्जियों के उत्पादन की यहां अपार संभावनाएं हैं. इन सब्जियों में मटर, टमाटर, शिमला मिर्च, फ्रांसबीन, पत्तागोभी, फूलगोभी तथा खीरा इत्यादि शामिल हैं, जो यहां ऐसे समय में बड़े पैमाने पर उगाई जा रही हैं. जब ये सब्जियां मैदानी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होती हैं. यही कारण है कि किसानों को यहां उगाई जा रही बेमौसमी-सब्जियों के अच्छे दाम कृषकों मिल रहे हैं जो परम्परागत फसलों से नहीं मिल पाते हैं.
आज प्रदेश में 77,000 हैक्टेयर भूमि सब्जी उत्पादन के अधीन है. जिसपर लगभग 16.54 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन किया जा रहा है. जबकि वर्ष 2000-01 के दौरान केवल 5.80 लाख मीट्रिक टन था. सब्जी उत्पादकों को बेमौसमी-सब्जी उत्पादन से 60 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति हैक्टेयर शुद्ध लाभ हो रहा है. जबकि पारम्परिक फसलों से यह लाभ केवल 8 हजार रुपये से लेकर 10 हजार रुपये प्रति हैक्टेयर ही हो पाता है.
प्रदेश में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, जैविक खेती तथा संरक्षित खेती को लोकप्रिय बनाने पर भी बल दिया जा रहा है. ताकि कृषि क्षेत्र विशेषकर सब्जी उत्पादन में यह प्रदेश तेजी से आगे बढ़े. इस दिशा में कारगर कदम उठाए जा रहे हैं.
‘डॉ. वाई.एस. परमार किसान स्वरोज़गार योजना’ के अंतर्गत 5.50 लाख वर्गमीटर क्षेत्र में 3050 पॉलीहाऊस स्थापित किए गए हैं. इसी प्रकार कृषि उत्पादन की गुणवत्ता में बढ़ौतरी के लिए प्रदेश में जैविक खेती को अपनाने के लिए 40 हजार किसान आगे आए हैं. यह एक प्रशंसनीय पहल है.
प्रदेश का अधिकतर कृषि क्षेत्र वर्षा पर निर्भर होने के कारण राज्य सरकार द्वारा अधिक से अधिक क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा के अंतर्गत लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. 321 करोड़ रुपये की ‘फसल विविधिकरण संवर्धन परियोजना’ के सफल कार्यान्वयन से इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को बड़ा बल मिला है. इस परियोजना से 945 हैक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधा के तहत लाया जा सका है. ‘राजीव गांधी सूक्ष्म सिंचाई योजना’ के अंतर्गत भी लगभग 1300 हैक्टेयर कमांड क्षेत्र को सिंचाई सुविधा प्रदान की गई है.
किसानों को बेहतर पौध सामग्री तथा उच्च किस्म के सब्जी बीज उपलब्ध करवाने के लिए शिमला के जुब्बड़हट्टी में सब्जी नर्सरी उत्पादन के लिए एक ‘उत्कृष्ट केन्द्र’ स्थापित किया गया है. ऐसे ही दो और केन्द्र ज़िला सोलन व मण्डी में भी स्थापित किए जा रहे हैं.
राज्य के कृषक समुदाय तथा प्रदेश सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता प्रदान करने की सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप फसलों के विविधीकरण की दिशा में प्रशंसनीय कार्य से प्रदेश की ग्रामीण आर्थिकी का कायाकल्प हुआ है. प्रदेश में कृषि क्षेत्र में लगभग 62 प्रतिशत लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार मिल रहा है. यह क्षेत्र प्रदेश की कुल राज्य घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत का योगदान भी कर रहा है.