नई दिल्ली. सोमवार को संसद के दोनों सदनों में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम उठाया गया, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (Impeachment motion) पेश किया गया। यह प्रस्ताव नकदी बरामदगी (cash seizure controversy) मामले से जुड़ा है, जिसमें उच्च न्यायालय के इस न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगे हैं।
लोकसभा (Lok Sabha) में कुल 145 सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत इस महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। इस प्रस्ताव का समर्थन कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, शिवसेना (शिंदे गुट), सीपीएम समेत कई विपक्षी दलों ने किया है। इसके अलावा कुछ सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिनमें अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले और केसी वेणुगोपाल जैसे नाम शामिल हैं।
विपक्ष ने राज्यसभा में भी महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया
राज्यसभा (Rajya Sabha) में लगभग 63 विपक्षी सांसदों ने न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए नोटिस प्रस्तुत किया। कांग्रेस के सैयद नसीर हुसैन ने बताया कि यह नोटिस सभापति को सौंप दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस के सदस्य इस मुद्दे पर सहमत हैं और बाद में अपना समर्थन देंगे।
न्यायमूर्ति वर्मा पर लगे आरोप और मामला क्या है?
यह विवाद 15 मार्च 2025 को तब शुरू हुआ, जब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर 500 रुपये के जले और अधजले नोट बरामद हुए। इस मामले की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक आंतरिक पैनल नियुक्त किया, जिसने पाया कि न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोररूम पर सक्रिय नियंत्रण था जहाँ ये नोट मिले। जांच में यह भी निष्कर्ष निकला कि यह कदाचार इतना गंभीर है कि न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोपों से इंकार किया है, लेकिन संसद अब इस मामले की गहन जांच करेगी और आगे के फैसले पर विचार करेगी।
कांग्रेस का रुख और सर्वदलीय समर्थन
कांग्रेस के सांसद के. सुरेश ने कहा कि कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक की पार्टियाँ भी इस महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन कर रही हैं। इसके अलावा, सर्वदलीय बैठक में भी इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाई गई है।