नई दिल्ली. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उठाए गए 14 संवैधानिक प्रश्नों की जांच के लिए सहमति दे दी है। ये प्रश्न राज्यपालों और राष्ट्रपति के राज्य विधानसभाओं के विधेयकों पर कार्रवाई करने की समयसीमा को लेकर हैं। इस कदम को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत समझा जा रहा है, जो राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के मामलों में न्यायालय से सलाह लेने का अधिकार देता है।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की गई
इस मामले की सुनवाई के लिए एक पाँच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की गई है, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई करेंगे। यह पीठ अगस्त के मध्य में मामले की सुनवाई शुरू करेगी। सुप्रीम कोर्ट 29 जुलाई को सुनवाई की तारीख अंतिम रूप देगा।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले के बाद उभरा है, जिसमें कहा गया था कि राज्यपालों के पास विधेयकों पर कार्रवाई करने का कोई विवेकाधिकार नहीं होगा और वे केवल मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर ही कार्य करेंगे। इस फैसले ने राज्यों को यह अधिकार दिया कि वे राष्ट्रपति से स्वीकृति न मिलने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की विशेष शक्तियों से जुड़े हैं
राष्ट्रपति द्वारा उठाए गए सवाल संवैधानिक शक्तियों की सीमा न्यायिक समीक्षा के दायरे, अनुच्छेद 361 के तहत किसी अधिकारी की कार्रवाई की समीक्षा पर रोक और अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की विशेष शक्तियों से जुड़े हैं। साथ ही ये भी पूछा गया है कि क्या राज्यपाल की स्वीकृति के बिना राज्य का कोई कानून मान्य हो सकता है।
यह मुद्दा केंद्र-राज्य संबंधों में नए विवाद और संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर तब जब कई विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों की भूमिका पर असहमति बढ़ रही है। राष्ट्रपति ने इस मामले को देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है और सुप्रीम कोर्ट की सलाह मांगी है।
इस फैसले से न केवल राज्यपालों और राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका की स्पष्ट व्याख्या होगी, बल्कि संघीय व्यवस्था में संस्थागत संतुलन और शक्तियों का पुनः निर्धारण भी संभव होगा।