नई दिल्ली. भारत-चीन Border Trade को लेकर Lipulekh Pass एक बार फिर चर्चा में है। नेपाल ने इस मार्ग से व्यापार शुरू करने पर कड़ी आपत्ति जताई, लेकिन भारत ने इसे स्पष्ट शब्दों में खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय (MEA) ने काठमांडू के क्षेत्रीय दावे को तो उचित और न ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित बताया।
नेपाल का दावा: कालापानी क्षेत्र हमारा हिस्सा
काठमांडू ने बयान जारी कर कहा कि लिपुलेख दर्रे का दक्षिणी इलाका, जिसे कालापानी क्षेत्र कहा जाता है, नेपाल का हिस्सा है। नेपाली विदेश मंत्रालय ने भारत से इस क्षेत्र में किसी भी गतिविधि, खासकर व्यापार संचालन से बचने की अपील की।
MEA का जवाब: ‘One-sided territorial claims unacceptable’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Randhir Jaiswal ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन सीमा व्यापार 1954 से जारी है। कोविड और अन्य परिस्थितियों के कारण यह बाधित हुआ था, लेकिन अब दोनों पक्ष इसे फिर से शुरू करने पर सहमत हुए हैं। नेपाल का क्षेत्रीय दावा न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और न ही तर्कसंगत है। किसी भी प्रकार का unilateral claim भारत को अस्वीकार्य है।
MEA ने यह भी कहा कि भारत Nepal के साथ Diplomacy और Dialogue के जरिए लंबित सीमा विवादों को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत-चीन के बीच नया समझौता
नई दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय वार्ता के बाद विदेश मंत्री S. Jaishankar, NSA Ajit Doval, PM Narendra Modi और चीन के विदेश मंत्री Wang Yi की मौजूदगी में एक संयुक्त घोषणा की गई। इसमें तीन प्रमुख border trade routes – Lipulekh Pass, Shipki La, Nathula Pass के ज़रिए व्यापार को फिर से खोलने पर सहमति बनी।
नेपाल का आधिकारिक रुख
नेपाल सरकार ने बुधवार को कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल का अभिन्न हिस्सा हैं। ये न सिर्फ आधिकारिक नेपाली नक्शे में शामिल हैं, बल्कि संविधान में भी स्पष्ट रूप से दर्ज हैं।
नेपाल की भौगोलिक स्थिति
नेपाल की सीमा पाँच भारतीय राज्यों – Sikkim, West Bengal, Bihar, Uttar Pradesh और Uttarakhand – से लगती है। दोनों देशों की साझा सीमा 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी है।