नई दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव के दोनों चरणों में इस बार 66.91% मतदान हुआ है, जो राज्य के इतिहास में अब तक का सबसे अधिक है। 1951 के पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक यह रिकॉर्ड मतदान है। 2020 की तुलना में इस बार 9.62 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी हुई है, जब मतदान 57.29% था।
सत्तारूढ़ NDA और विपक्षी महागठबंधन दोनों ही बढ़े हुए वोट प्रतिशत को अपने पक्ष में बता रहे हैं।
ऐतिहासिक पैटर्न: जब भी वोटिंग बढ़ी, बिहार में बदली सत्ता
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिन राज्यों में मुकाबला दो ध्रुवीय होता है, वहां वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी आम तौर पर सत्ता परिवर्तन का संकेत देती है। बिहार के इतिहास में 17 विधानसभा चुनावों में से 5 बार ऐसा हुआ है जब बढ़े हुए मतदान के बाद सरकार बदली है।
1967 – जनक्रांति दल ने कांग्रेस को हटाया, वोटिंग 7.04% बढ़ी
1969 – कांग्रेस की वापसी, मतदान में मामूली 1.28% की बढ़ोतरी
1980 – कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी, मतदान में 6.77% की वृद्धि
1990 – जनता दल ने लाया लालू यादव युग, पहली बार वोटिंग 60% पार
2005 (अक्टूबर) – भारी गिरावट के बाद जेडीयू-भाजपा गठबंधन की जीत, नीतीश पहली बार बने सीएम
2005 के बाद लगातार बढ़ी वोटिंग, लेकिन सत्ता परिवर्तन नहीं
अक्टूबर 2005 के चुनावों के बाद से हर बार मतदान प्रतिशत में निरंतर बढ़ोतरी हुई है —
2010 में 52.73%, 2015 में 56.91%, और 2020 में 57.29%।
2015 का चुनाव एक अपवाद था, जब नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाई थी।
132 सीटों पर 10% से ज्यादा बढ़ी वोटिंग – निर्णायक बन सकता है यह आंकड़ा
इस बार 243 सीटों में से 132 सीटों पर वोटिंग में 10% से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
बेलसंड सीट पर सबसे अधिक 17.86%
मोहिउद्दीननगर में 17.84%
झाझा में 17.81%
2020 के चुनाव में इन 20 उच्च-वोटिंग सीटों में से जेडीयू ने 7, भाजपा ने 5, राजद ने 5, कांग्रेस ने 1, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने 1 और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी।
महिलाओं का वोटिंग पावर बढ़ा, निर्णायक बन सकता है महिला वोट बैंक
इस बार बिहार में महिलाओं ने मतदान का नया रिकॉर्ड बनाया है। 8.8% अधिक महिला मतदाताओं ने वोट डाला, जो पुरुषों से भी ज्यादा रहा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि महिला वोटिंग बढ़ने से सामाजिक योजनाओं पर केंद्रित दलों को फायदा हो सकता है।
क्या 2025 में दोहराएगा इतिहास?
इतिहास गवाह है कि जब भी बिहार में मतदाता संख्या में बड़ा इज़ाफा हुआ, सत्ता का समीकरण बदला है। अब सवाल यही है —
क्या इस बार भी बढ़ी वोटिंग किसी नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत करेगी, या नीतीश युग कायम रहेगा?
