शिमला. ‘अनोखी डाली’ मेला राजधानी शिमला से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर जुब्बड़हट्टी एयरपोर्ट में कई साल से मनाया जा रहा है. दीवाली से पूरा एक महीने बाद यह मेला आयोजित होता है.
मेले का इतिहास
वर्तमान में जहां शिमला जुब्बड़हट्टी एयरपोर्ट है उस स्थान पर नरसिंह देवता का वास था, जिस स्थान पर सदियों पहले एक अनोखा पौधा उगा, इलाकें में जिस किस्म का पौधा कभी किसी ने नहीं देखा था. इसके बाद इस अनोखी डाली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आने लगे. पौधा देखने के लिए लोग इतने अधिक आना शुरू हो गए कि मानों मेला लगा हो. जिसके बाद से ‘अनोखी डाली’ के नाम से मेला ही मनाया जाने लगा. कई सालों तक इसी जगह पर मेला होता रहा.
लोग इसे देव परंपरा से जोड़ते
हालांकि सालों पहले जहां मेला लगता था वहां अब एयरपोर्ट रनवे है. एयरपोर्ट बनने के बाद मेले का स्थान बदलना पड़ा,कुछ साल जुब्बड़हट्टी से चार किलो मीटर पीछे शिमला की ओर हल्टी जगह में यह मेला लगा, इसके आसपास की जगह एयरपोर्ट में तैनात सीआइएसएफ के जवानों के रेजिडेंस होने से यहां भी स्थान बदलना पड़ा और अब जुब्बड़हटृटी मुख्य बाजार में एक निजी स्कूल के ग्राउंड में यह ‘अनोखी डाली’ का मेला लगता है. लोग इसे देव परंपरा से जोड़ते हैं.
स्थानीय निवासी हरिओम का कहना है कि श्रीराम वनवास काटने के बाद जब राजगद्दी पर बैठे थे यानी दीवाली के पूरे एक महीने पर यह मेला मनाया जाता है. ठोडा खेल जो तीर कमान से खेला जाता है इस मेले की परंपरा है.
मेले की खासियत
इस मेले की एक खासियत यह भी है कि यहां पारंपरिक ठोडा खेल भी खेला जाता है. तीर कमान से यह खेल खेला जाता है. खेल के अतिरिक्त ठोडा नृत्य भी होता है जो पुरानी विलुप्त होती परंपरा है. ठोडा खेलने वाले नरेंद्र ठाकुर का कहना है कि कौरव पांडवों से लेकर खेल चला आया है. पूर्वज सदियों से खेलते आ रहे है. देव कार से यह जुड़ा है. बाण व तीर शुद्धि में बनाए जाते है. भविष्य में यदि कभी मेला बंद भी हो जाए मगर हमें ठोडा नृत्य करने आना ही पड़ेगा, यह देवता का घर है. ऐसा न करने पर अन्यथा देव दंड झेलना पड़ेगा.
कौरवों व पांडवों के बीच में जो युद्ध हुआ था वो तीर कमान से हुआ था. तीर कमान को यादगार के रूप में इस खेल को खेला जाता है. क्षेत्र के लोग शाटी व पाशी के रूप में इस खेल को खेलते है, शाटी यानी कौरव व पाशी यानी पांच पांडव.
45 साल ठोडा खेल खेलने आए पूर्ण चंद ठाकुर ने कहा कि झोटों के मेले पर लगाई गई रोक सही नहीं है. यह भी एक देव परंपरा है, जिसे निभाया जाना अनिवार्य है. मेले भले ही न हो लेकिन जो देवता की कार का होना जरूरी है.