भरूच. लखी गांव के जमीन का पहला अधिग्रहण 1995 में हुआ. साल-दर-साल कंपनियां आती गईं और खेती की जमीन पर कारखाने स्थापित होते गये. आज गांव है, लेकिन उसकी खेती की जमीन पर चारो ओर कारखाने खड़े हैं.
नौकरी मिलने में आनाकानी
जमीन देने वाले किसान के परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी देने का वादा था. शुरूआत में वादे पूरे भी हुये. गांव के उप सरपंच रायजी भाई गोहिल बताते हैं कि बाद में कंपनियां नौकरी देने में आनाकानी करने लगी. वे नेताओं के साथ कंपनियों की सांठगांठ को इसकी वजह मानते हैं. वहीं सरपंच सतीश भाई जीतसंग कहते हैं कि उम्र और अर्हता नहीं मिलने की वजह से अभी आधे लोगों को नौकरी नहीं मिल पायी है.
नहीं मिला कोई फंड
भरूच जिले का यह गांव वागरा विधानसभा क्षेत्र में आता है. भाजपा के अरुण चिराना यहां के विधायक हैं. रायजी गोहिल बताते हैं कि पांच सालों में विधायक ने गांव के लिये कोई फंड नहीं दिया है. वहीं, पंचायत का फंड भी राजनीतिक रंजिश में खर्च नहीं हो सका है. गटर बने सड़क भी यही बताते हैं. चिराना कहते हैं, “गटर बनवाने के लिये हमारे धारासभ्य(विधायक) ने बहुत मेहनत की है, लेकिन चुनाव की वजह से काम नहीं हो पाया है.” वहीं, गांव का तालाब कचरों से पटा है.
लखी गांव के उपसरपंच बताते हैं, “सरपंच और ऊपर के जनप्रतिनिधियों के अलग-अलग राजनीतिक पार्टी से संबंध होने की वजह से पंचायत के काम में अड़ंगा लग जाता है, फंड रहने के बावजूद कोई काम नहीं हो सका है. “
उद्योग होने के बावजूद बेरोजगार
आसपास उद्योग होने के बावजूद गांव के युवाओं में बेरोजगारी है. ज्यादातर कारखानों में मजदूरी करते हैं. उपसरपंच बताते हैं जिन्हे नौकरी मिली भी है वह कांट्रक्ट पर है. कहते हैं, “इंजीनियरिंग का डिप्लोमा और डिग्री के बावजूद भी उनके घर के लड़को को नौकरी नहीं मिल रही है. अब जमीन भी नहीं बची जिसपर खेती की जा सके. सब धक्के खा रहे हैं.”
गांव के सरपंच सतीश भाई कहते हैं कि कंपनी से हमारी लड़ाई गांव के पढ़े-लिखे लोगों को रोजगार दिलाने की है, ‘लैंड-लूजर’ को आज न कल तो नौकरी मिल ही जानी है. वे कहते हैं, “कारखानों का प्रदूषण हम झेले और नौकरी बाहर वाले लें यह कहां का इंसाफ है.” उपसरपंच गांव में प्रदूषण से बीमारी बढ़ने की बात कहते हैं.
दो शिक्षकों के भरोसे स्कूल
रायजी गोहिल रोजगार और विकास के मोर्चे पर गांव के पिछड़ने की बात स्वीकार करते हैं. बताते हैं कि गांव का माध्यमिक स्कूल सिर्फ दो शिक्षकों के भरोसे चल रहा है. वे, “गांव में नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट.” होने की बात करते हैं.
गांव में 2,100 से अधिक वोटर हैं. लखी, कोली-पटेल और हरिजनों का गांव है. कोली-पटेल ओबीसी में आते हैं. हार्दिक पटेल जिस आरक्षण की बात करते हैं. यहां के कोली-पटेल के लिये इसका कोई मायने नहीं हैं.