नई दिल्ली. देशभर की निगाहें गुरुवार को संसद भवन में लगी होंगी, जब वित्तमंत्री अरुण जेटली संसद वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करेंगे. माना जा रहा है कि इसबार लोकलुभावन यानि पॉपुलिस्ट बजट देश को मिल सकता है. संसद में अभी तक 87 बार बजट पेश हुए हैं, जिसमें 70 बार सामान्य बजट, 13 बार अंतरिम बजट और 4 बार विशेष बजट, जिसे मिनी बजट कहा जाता है पेश किया गया है.
बजट शब्द फ्रेंच शब्द ‘बजटे’ से लिया गया है, जिसका आशय एक छोटे से थैले से है. इस प्रकार बजट सरकार की आय एवं व्ययों का एक आथिर्क विवरण है. सरकार हर साल बजट बनाकर दो काम करती है. अगले वित्तवर्ष में देश के विभिन्न क्षैत्रों जैसे उद्योग, इंफ्रास्टक्चर, स्वास्थ्य और परिवान में किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों में होने वाले खर्चों का अनुमान लगाती है. उन खर्चों को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है यह भी होता है. जैसे सरकार कुछ चीजों पर कुछ खास तरह के नए टैक्स लगाने या बढ़ाने अथवा किसी में पहले से दी जा रही सब्सिडी को कम या खत्म करने उपाय करती है.
यानी सरल शब्दों में कहें तो सरकार ये निश्चित करती है कि उसे अगले वर्ष देश के विकास से संबंधित किन चीजों पर प्राथमिकता के साथ खर्च करना है और उन खर्चों के लिए धन की व्यवस्था कैसे करनी है. आय और व्यय के इसी ब्यौरे का नाम बजट है. प्रत्येक बजट एक निश्चित अवधि के लिए बनाया जाता है. भारत सरकार अपना बजट एक अप्रैल से लेकर 31 मार्च के वित्तीय वर्ष के लिए बनाती है.
1860 में आम बजट प्रस्तुत किया गया था
भारत में सबसे पहले ब्रिटिश शासनकाल में 1860 में आम बजट प्रस्तुत किया गया था. बजट बनाने और पेश करने का श्रेय फाइनेंस मेंबर जेम्स विल्सन को जाता है, जिन्होंने 18 फरवरी 1860 को वाइसराय की परिषद में पहली बार बजट पेश किया था. भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाला वित्तीय वर्ष 1867 से शुरू हुआ. इससे पहले तक 1 मई से 30 अप्रैल तक का वित्तीय वर्ष होता था.
आजादी से पहले अंतरिम सरकार का बजट ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के लियाकत अली खां ने अक्टूबर से लेकर 14 अगस्त तक के लिए पेश किया था. आजाद भारत का पहला अंतरिम बजट नवंबर 1947 को आरके षण्मुखम शेट्टी ने प्रस्तुत किया था. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-112 में भारत के केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है. पहले आम बजट हर साल फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को संसद में पेश किया जाता था लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने इस परंपरा को बदल दिया है.
जवाहरलाल नेहरू ऐसे पहले प्रधानमंत्री जिन्होंने संसद में बजट भी पेश किया था-
भारत के वित्तमंत्री की तरफ प्रस्तुत किया जाता है लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने संसद में बजट भी पेश किया था. बजट को लागू करने से पहले इसे संसद द्वारा पास करना आवश्यक होता है. जॉन मथाई आजाद भारत के दूसरे वित्तमंत्री बने थे. उन्होंने 1949-50 का बजट पेश करते हुए पूरा बजट नहीं पढ़ा था बल्कि बजट के कुछ खास बिंदुओं को सदन में पढ़ा. इस बजट में पहली बार योजना आयोग और पंचवर्षीय योजना का जिक्र किया गया था. सीडी देशमुख रिजर्व बैंक के एकमात्र ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने 1951-52 में अंतरिम बजट प्रस्तुत किया था.
वर्ष 1955-56 से बजट के दस्तावेज को हिन्दी में भी तैयार किया जाने लगा इससे पहले बजट केवल अंग्रेजी भाषा में बनाया जाता था. भारत के केंद्रीय बजट में 1955-56 में पहली बार कालाधन उजागर करने की स्कीम शुरू की गई थी. पहला विशेष बजट यानी मिनी बजट वित्त विधेयकों के माध्यम से प्रचलित घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिति की मांग पर ताजा कराधान प्रस्तावों के रूप में 30 नवंबर 1956 को टीटी कृष्णमाचारी द्वारा पेश किया गया था. मोरारजी देसाई ने अपने 8 साल के कार्यकाल में सर्वाधिक 10 बार संसद में बजट प्रस्तुत किए्. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में 5 साल, जबकि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 3 साल देश के वित्तमंत्री रहे.
संसद में बजट प्रस्तुत करने वाली एकमात्र महिला इंदिरा गांधी थीं
संसद में बजट प्रस्तुत करने वाली एकमात्र महिला इंदिरा गांधी हैं जिन्होंने 1970 में बजट पेश किया था. इंदिरा गांधी वित्तमंत्री का पद संभालने वाली एकमात्र महिला हैं. चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में एक बार आम बजट पेश किया. उस समय वे देश के उपप्रधानमंत्री भी थे. वित्तमंत्री का पद हासिल करने वाले राज्यसभा के पहले सदस्य प्रणब मुखर्जी ने 1982-83, 1983-84 और 1984-85 के वार्षिक बजट को प्रस्तुत किया. 1987-88 में वीपी सिंह द्वारा सरकार से अलग हट जाने के बाद राजीव गांधी देश के तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपनी मां इंदिरा गांधी और नाना जवाहरलाल नेहरू के बाद बजट को प्रस्तुत किया.
पहली बार ऐसा हुआ जब अंतरिम बजट यशवंत सिन्हा और फाइनल बजट मनमोहन सिंह ने पेश किया
1991 में डॉ. मनमोहन सिंह भारत के वित्तमंत्री बने, लेकिन चुनाव की विवशता के कारण पहली बार वे 1991-92 के लिए अंतरिम बजट ही प्रस्तुत कर सके. 1991-92 में अंतरिम तथा फाइनल बजट को अलग-अलग दलों के वित्तमंत्रियों ने संसद में रखा. अंतरिम बजट यशवंत सिन्हा जबकि फाइनल बजट को मनमोहन सिंह ने प्रस्तुत किया. तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने बजट 1992-93 में अर्थव्यवस्था को मुक्त कर दिया. उन्होंने विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया और आयात कर को कम करते हुए 300 से अधिक प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक किया.
1994 में पहली बार सेवाकर का प्रावधान केंद्रीय बजट हुआ
1994 में सेवाकर का प्रावधान केंद्रीय बजट में किया गया था. इस बजट को तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने पेश किया था. टैक्स के दायरे में सर्विस सेक्टर को लाने के विचार के कारण ही बजट में सर्विस टैक्स का प्रावधान किया गया था. 1996 में चुनाव के बाद एक गैर-कांग्रेसी नेता ने वित्तमंत्री का पद ग्रहण किया इसलिए 1996-97 का अंतरिम आम बजट पी. चिदंबरम के द्वारा प्रस्तुत किया गया. चिदंबरम उस समय तमिल मानिला कांग्रेस (यूनाइटेड फ्रंट) से संबंधित थे.

एक संवैधानिक संकट के बाद जब इंद्रकुमार गुजराल का कार्यकाल खत्म हो रहा था, तब पी. चिदंबरम के 1997-98 के आम बजट को पारित करने के लिए संसद का एक विशेष सत्र बुलाया गया था. 1997-98 के आम बजट को बिना बहस के ही पारित किया गया था. यह दूसरी बार था, जब अंतरिम और फाइनल बजट अलग-अलग पार्टियों के दो मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किया गया था.
वर्ष 2001 में टूटी परंपरा, बजट को शाम की बजाय 11 बजे संसद में पेश किया जाने लगा
वर्ष 2000 तक अंग्रेजी परंपरा के अनुसार बजट शाम को 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन 2001 में एनडीए सरकार ने इस परंपरा को तोड़ते हुए शाम के बजाय सुबह 11 बजे संसद में बजट पेश किया. वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने पहली बार शाम के बजाय सुबह के वक्त बजट प्रस्तुत किया. तब से लेकर हर साल सुबह के ही वक्त बजट पेश किया जाता है.
सामान्य स्थिति में बजट निर्माण की प्रक्रिया सितंबर से शुरू हो जाती है. बजट के लिए सभी मंत्रालयों, विभागों और स्वायत्त निकायों को सर्कुलर भेजा जाता है जिसके जवाब में विवरण के साथ उन्हें आगामी वित्तीय वर्ष के अपने-अपने खर्च, विशेष परियोजनाओं का ब्योरा और फंड की आवश्यकता की जानकारी देनी होती है. यह बजट की रूपरेखा के लिए एक आवश्यक कदम है.
7 दिनों तक बाहरी दुनिया से कटे रहते हैं बजट से जुड़े अधिकारी
बजट को सार्वजनिक करने से पहले इसे बेहद ही गुप्त रखा जाता है. बजट बनाने के दौरान वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी, विशेषज्ञ, प्रिंटिंग टेक्नीशियन और स्टेनोग्राफर्स नार्थ ब्लॉक में एक तरह से कैद में रहते हैं. बजट को संसद में पेश करने से पहले 7 दिनों तक इससे जुड़े अधिकारी बाहरी दुनिया से एकदम कट जाते हैं. वे परिजनों से भी बात नहीं कर सकते हैं.
किसी आपातकालीन स्थिति में इन अधिकारियों के परिवार उन्हें दिए गए नंबर पर संदेश छोड़ सकते हैं, लेकिन उनसे सीधे बात नहीं कर सकते. इस दौरान नॉर्थ ब्लॉक में ‘हलवा सेरेमनी’ का आयोजन किया जाता है. इसके लिए बड़े पैमाने पर हलवा (स्वीट डिश) तैयार किया जाता है जिसे बजट से जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों के बीच बांटा जाता है. वित्तमंत्री भी इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं. संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी बजट बनाने वाली टीम की गतिविधियों और फोन कॉल्स पर नजर रखते हैं.
साइबर चोरी से बचाने के लिए कम्प्यूटर्स को एनआईसी के सर्वर से अलग रखा जाता
साइबर चोरी की आशंका से बचने के लिए स्टेनोज के कम्प्यूटर्स को नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) सर्वर से अलग रखा जाता है. इस दौरान एक पॉवरफुल मोबाइल जैमर नॉर्थ ब्लॉक में कॉल्स को ब्लॉक करने और जानकारियों के लीक होने से बचने के लिए इंस्टॉल किया जाता है. जहां स्टेनोग्राफर और अन्य अधिकारी काम करते हैं और रहते हैं, वहां वित्तमंत्री के साथ ही इंटेलिजेस ब्यूरो चीफ अचानक दौरा कर सकते हैं. यही क्रम नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट के प्रिंटिंग प्रेस क्षेत्र में भी जारी रहता है.
बजट पेपर नॉर्थ ब्लॉक के प्रिंटिंग प्रेस में छपता है
पहले बजट पेपर्स राष्ट्रपति भवन में ही छपा करते थे, लेकिन 1950 में बजट पेपर लीक हो जाने के बाद बजट पेपर्स को मिंटो रोड स्थित सिक्योरिटी प्रेस में छापा जाने लगा. 1980 से बजट पेपर नॉर्थ ब्लॉक से प्रिंट होने लगा. भारतीय संविधान के अनुसार देश का आम बजट बनाने के लिए 14 जरूरी डॉक्यूमेंट्स की आवश्कता होती है. बजट का भाषण वित्तमंत्री का एक सबसे सुरक्षित दस्तावेज होता है. इसे बजट की घोषणा होने के दो दिन पहले मध्यरात्रि में प्रिंटर्स को सौंपा जाता है.
राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही बजट की प्रक्रिया पूरी होती है
बजट प्रस्तुत किए जाने के बाद बजट के प्रस्तावों पर संसद में सामान्य और विस्तृत बहस होती है. आमतौर पर यह बहस लोकसभा में 2 से 4 दिन तक चलती है. सदन में बहस के अंतिम दिन स्पीकर की ओर से सभी बकाया अनुदान मांगों को वोट पर रखा जाता है. लोकसभा में बहस के बाद विनियोग विधेयक पर वोटिंग के साथ वित्त और धन विधेयक पर वोटिंग होती है. संसद की मंजूरी के बाद विधेयक को 75 दिन के भीतर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति के विधेयक को मंजूरी के साथ ही बजट प्रक्रिया पूरी हो जाती है.