कुल्लू. देवभूमि कुल्लू में आजकल जिला प्रशासन द्वारा नारी गरिमा अभियान चलाया जा रहा है जिसकी प्रदेश भर में तारीफ भी हो रही. साथ ही साथ इसकी निंदा भी झेलनी पड़ रही है.
इस अभियान के तहत प्रशासन द्वारा मासिक धर्म के दौरान नारी को अछूत मानने की भ्रांतियों को खत्म करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया हुआ है, लेकिन अभी तक गांव मलाणा में महिलाओं के प्रति चली आ रही भ्रांतियों से अनभिज्ञ है.
मासिक धर्म की भ्रांतियां
जिला कुल्लू में आज भी महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पांच से सात दिन तक गौशाला या शौचालय में रहना पड़ता है. हालांकि अब कई परिवारों ने घर की निचली मंजिल में गौशाला के बजाय हर सुख-सुविधा वाले कमरों का निर्माण किया है और अब मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को इन सुविधा से लेस कमरों में रखा जाता है, लेकिन भ्रांतियों का दौर आज भी जारी है.
प्रसव के दौरान परंपरा
मलाणा गांव में प्रसव के दौरान महिला को घर से बाहर निकाला जाता है और आंगन में किलकारियां गुंजती है. लिहाजा में खानदान के नए चिराग का आगमन घर के आंगन में होता है. यह सिलसिला यहीं नहीं रूकता है बल्कि 11 दिनों तक जच्चा-बच्चा को आंगन में ही रखा जाता है.
हालांकि घर के चिराग के आगमन में आंगन को पूरी तरह से सजाया जाता है और ठंड से बचने के लिए सारे इंतजामात किए जाते है, लेकिन 21वीं सदी में इस तरह की परंपराएं जिंदा है इसके पीछे यहां का समाज कई तरह के तर्क देता है.
हैरानी इस बात की है कि महिलाएं भी खुशी-खुशी से प्रसव के दौरान अपने आंगन में बच्चों जन्म देने पर गर्व महसूस करती है.
जिला प्रशासन का जागरूकता अभियान
जिला प्रशासन के इस जागरूकता अभियान की बेशक चारों तरफ तारीफ हो रही हो लेकिन देव समाज और पहाड़ी समाज के लोग इसकी घोर निंदा भी कर रहे है. निंदा करने वालों में से पुरूष वर्ग ही नहीं बल्कि कुछ स्थानों की महिलाएं स्वयं भी हैं. उनका कहना है कि आखिर यह हमारी परंपराएं हैं और इन्हें खत्म नहीं करना चाहिए.
मलाणा की बदलती कानून व्यवस्था
दो दशक पहले तक यदि मलाणा गांव में प्रवेश करना होता था तो गांव से बाहर ही जूते और चमड़े की वस्तुएं उतार कर जाना पड़ता था. पूरे गांव का भ्रमण नंगे पांव होता था और गांव में प्रवेश से पहले गांव के बाहर प्राकृतिक चश्मे हाथ -पांव धोकर ही प्रवेश करना पड़ता था.
किसी कारणवश मलाणा के लोगों को गांव से बाहर आना पड़े और बाहरी लोगों को छूना पड़े तो गांव में वापसी प्रवेश से पहले स्नान करना पड़ता था, किंतु यह परंपरा और कानून भी समाप्त हो चुका है.
कुछ जिंदा परंपराएं
– इस गांव की महिलाएं सिर्फ चांदी के आभूषण पहन सकती है।
– महिला के प्रसुति होने पर जच्चा-बच्चा को 11 दिनों तक घर में प्रवेश पर प्रतिबंध है.
– शाह के सम्राज्य में दहेज प्रथा कानूनी अपराध है.
– यहां बाल विवाह नहीं होते हैं.
– यहां के नौजवान और युवतियां अपने राजतंत्र क्षेत्र से बाहर विवाह नहीं कर सकते हैं.
– मलाणा के कानून में पति और पत्नी दोनों को तलाक देने और लेने की व्यवस्था है.
– सभी कार्य देवता को पूछकर ही होते हैं.