शिमला. धुआं धुआं सा रहने दो मुझे दिल की बात कहने दो… यह तो गाने के बोल है लेकिन पहाड़ों में यह धुआं रहा तो ज़िंदगी छोड़नी पड़ेगी. अपनी यही दिल की बात इन दिनों जुब्बल कोटखाई और कोटगढ़, कुमारसेन के लोग प्रशासन से कह रहे है, लेकिन इनकी बात सुनने को न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, न वन विभाग और न ही हिमाचल सरकार सुनने को राजी है.
अब स्थानीय लोगों ने इस धुएं को रोकने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की शरण में चले गए हैं. जी हां पर्यावरण सरंक्षण समिति कोटखाई ने एनजीटी के समक्ष शिकायत दर्ज कर क्षेत्र में आग के धुएं को रोकने की मांग की है.
समिति का कहना है कि सेब बाहुल इस इलाके में सर्दियों के दिनों में सेब के पेड़ों की काट छांट कर अनावश्यक शाखाओं को काट जाता है. जिससे हजारों बीघा सेब बागानों में सैंकड़ों टन टहनियां की ढेर लग जाते हैं. किसी उपयोग में न आने के चलते बागवान इसे आग के हवाले कर लेते है. जिसके धुंए से इन दिनों पूरा वायु मंडल जहरीला हो गया है.
वहीं बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों का भी क्षेत्र में निवास करना मुश्किल हो चुका है. रोजाना दर्जनों लोग अस्पतालों और दवाखानों के चक्कर लगाने को मजबूर है. आलम यह है कि इन इलाकों में जहां भी नजर डाले वहीं आग की लपटों के साथ धुएं के गुब्बार उठ रहे हैं.
पर्यावण सरंक्षण समिति के अध्यक्ष दिग्विजय चौहान और महासचिव शिव प्रताप ने कहा कि समिति 2013 से लेकर इस मामले को लगातार संबधित विभागों व सरकार से उठ रही है. साथ ही आम लोगों और बागवानों को भी जागरूक कर इस तरह की आग लगाने से रोका जा रहा है, लेकिन प्रशासन व सरकार मामले पर गंभीर नहीं है.
समिति ने दिये थे सुझाव
समिति ने सुझाव दिया था कि इस अवशिष्ट को जलाने की बजाय इससे कम्पोस्ट खाद बनाई जाए या उद्योगों में इसका इस्तेमाल ऊर्जा स्रोत के तौर पर किया जाए. जिससे पर्यावरण सरंक्षण के साथ ही आय भी सृजित हो और लोगों को बीमारियों से भी निजात मिले लेकिन 5 साल के लगातार प्रयास के बाद भी इस पर अंकुश नहीं लगाया गया.
ऐसे में समिति ने अब एनजीटी के समक्ष मामला रखा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार के समक्ष भी इस मामले को उठाया जाएगा, ताकि इस धुंए की समस्या का स्थायी समाधान निकाल कर प्रदेश के लोगों को राहत मिल सके.