नई दिल्ली. बिहार में पिछले कुछ चुनावों से महिलाओं की वोटिंग दर पुरुषों से ज्यादा रही है, लेकिन विधानसभा में उनकी राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व अब भी बेहद कम है। पिछले पांच विधानसभा चुनावों के आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि वोट डालने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, मगर उन्हें टिकट मिलने और जीतने के अवसर सीमित रहे हैं।
पिछले चुनावों का रिकॉर्ड
फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव (झारखंड अलग होने के बाद पहले चुनाव) में 234 महिलाएं मैदान में उतरीं, जिनमें से 24 ने जीत दर्ज की। उसी साल अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए, जिसमें केवल 138 महिलाएं उम्मीदवार थीं और उनमें से 25 विधायक बनीं।
2010 में यह संख्या बढ़ी — 307 महिला उम्मीदवारों में से 34 ने जीत दर्ज की, जिनमें 22 जेडीयू, 11 बीजेपी और 1 निर्दलीय उम्मीदवार शामिल थीं।
2015 में महिलाओं के चुनाव लड़ने और जीतने दोनों में गिरावट दर्ज की गई। 273 महिलाएं चुनाव लड़ीं, जिनमें से केवल 28 जीतीं। उस चुनाव में जेडीयू और राजद गठबंधन में थे। दोनों दलों ने 10-10 महिलाओं को टिकट दिया था। राजद की सभी महिलाएं जीतीं, जबकि जेडीयू की 9 महिला उम्मीदवारें सफल रहीं। बीजेपी की 14 में से 4 और कांग्रेस की 5 में से 4 महिलाएं चुनाव जीतीं।
2020 में स्थिति और कमजोर रही। 370 महिला उम्मीदवारों में से सिर्फ 26 विधानसभा तक पहुंचीं। बीजेपी ने 13 और जेडीयू ने 22 महिलाओं को टिकट दिया था, जिनमें क्रमशः 9 और 6 ने जीत दर्ज की। वहीं, वीआईपी और हम (सेक्युलर) की एक-एक महिला उम्मीदवार विजयी रहीं। राजद की 16 में से 7 और कांग्रेस की 7 में से 2 महिलाएं विधानसभा तक पहुंचीं।
2025 के चुनाव में महिला उम्मीदवारों का हाल
आगामी चुनाव के लिए एनडीए ने 34 महिलाओं को टिकट दिया, जबकि महागठबंधन ने 30 महिलाओं को मौका दिया है।
बीजेपी और जेडीयू – 13-13 महिलाएं
लोजपा (रामविलास) – 5
हम (सेक्युलर) – 2
आरएलएम – 1
राजद – 24 (श्वेता सुमन का नामांकन निरस्त)
कांग्रेस – 5
सीपीआई (एम-एल) और वीआईपी – 1-1
बीएसपी – 26
जनसुराज पार्टी – 25 महिलाएं
राजनीतिक दलों में महिलाओं को टिकट देने में अनिच्छा
मगध विश्वविद्यालय, बोधगया की राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मला कुमारी के अनुसार, राजनीतिक दलों की हिचकिचाहट महिलाओं की कम भागीदारी की मुख्य वजह है। उन्होंने कहा, “हर दल में महिला प्रकोष्ठ और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली महिलाएं हैं, लेकिन टिकट अक्सर बाहरी या दलबदलू नेताओं को दे दिए जाते हैं। इस बार भी ज्यादातर महिला उम्मीदवार मौजूदा विधायक हैं।”
क्यों अहम हैं महिला वोटर्स
पिछले तीन विधानसभा चुनावों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है।
2020 में: महिलाएं 59.69%, पुरुष 54.45%
2015 में: महिलाएं 60.48%, पुरुष 53.32%
2010 में: महिलाएं 54.49%, पुरुष 51.12%
नीतीश कुमार सरकार ने पिछले दो दशकों में कई महिला-केंद्रित योजनाएं लागू कीं — पंचायतों में 50% आरक्षण, साइकिल योजना, शराबबंदी, जीविका समूहों का गठन, और महिला उद्यमियों को वित्तीय सहायता। एक जेडीयू नेता ने कहा, “नीतीश जी की सबसे बड़ी ताकत उनकी महिला वोट बैंक है, जिसे उन्होंने 11 लाख स्व-सहायता समूहों और 1.21 करोड़ महिला उद्यमियों के ज़रिए मजबूत किया है।”
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव भी महिलाओं को आकर्षित करने में जुटे हैं। उन्होंने हाल ही में ‘जीविका’ कार्यकर्ताओं के लिए दो साल तक ब्याज-मुक्त ऋण और MAA (मकान, अन्न, आमदनी) व BETI (Benefit, Education, Training, Income) जैसी योजनाओं की घोषणा की है। ये महागठबंधन की प्रस्तावित ‘माई बहिन मान योजना’ का ही विस्तार हैं, जिसके तहत जरूरतमंद महिलाओं को हर महीने ₹2,500 की सहायता देने का वादा किया गया है।
