नई दिल्ली. देश के ग्रामीण इलाकों में रोजगार सुनिश्चित करने वाली योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा – MGNREGA) के तहत पहली बार केंद्र सरकार ने खर्च की सीमा तय की है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में मनरेगा के लिए कुल वार्षिक बजट आवंटन का केवल 60% खर्च करने की अनुमति दी गई है। इससे पहले यह योजना मांग आधारित (Demand Driven) थी और खर्च की कोई निश्चित सीमा नहीं थी।
मनरेगा खर्च पर पाबंदी का कारण
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को यह निर्देश दिया है कि मनरेगा के तहत होने वाले खर्च को मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना (Monthly/Quarterly Expenditure Plan – MEP/QEP) के अंतर्गत लाया जाए। यह खर्च नियंत्रण का एक तरीका है, जो अन्य मंत्रालयों में पहले से लागू है। हालांकि, मनरेगा को अब तक इस नियंत्रण से मुक्त रखा गया था।
मई 2025 में वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को आधिकारिक पत्र भेजकर 60% की खर्च सीमा लागू करने की बात कही। यह कदम कैश फ्लो नियंत्रण (Cash Flow Control) और गैर जरूरी उधारी कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
वित्तीय वर्ष 2025-26 की योजना और बजट आवंटन
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपनी मासिक/त्रैमासिक व्यय योजना में 2025-26 की पहली दो तिमाहियों में अधिक खर्च करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया। अब सितंबर 2025 तक कुल आवंटित बजट का 60% ही खर्च किया जा सकेगा, जबकि बाकी 40% खर्च शेष दो तिमाहियों में किया जाएगा।
मनरेगा और ग्रामीण रोजगार पर प्रभाव
मनरेगा योजना ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाती है। खर्च पर यह नई सीमा ग्रामीण रोजगार पर क्या प्रभाव डालेगी, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि खर्च सीमित होने से मनरेगा के तहत रोजगार के अवसरों में कमी आ सकती है, जबकि सरकार का तर्क है कि इससे योजना की वित्तीय स्थिरता बनी रहेगी और संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होगा।