सोलन(दून). बद्दी में औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन में छठ पूजन की खूब धूम देखी जा रही है. औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर जगह-जगह भारतीय प्रवासियों ने साड़ी और धोती की पोशाकों में पूजा करने निकल रहे हैं. चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजन के तीसरे दिन वीरवार को क्षेत्र में भक्तिमय गानों का महौल रहा. साथ ही क्षेत्र की नदियों और तालाबों पर भी प्रवासी भारतीय पूजा अर्चना करते नजर आए.
गंदे पानी की समस्या
हैरानी की बात तो यह है कि बीबीएन में इन प्रवासी लोगों को साफ पानी न मिलनें के कारण लोगों को गंदे पानी में ही छठ पूजा करनी पड़ रही है. नदियों के गंदे पानी की वजह से कुछ लोग तो छठ पूजा पर मजबूरन अपने राज्य भी लौट गए हैं.
नदियों के प्रदूषित जल में स्नान तो दूर की बात है छींटे लेने से भी मन घबराता है, लेकिन इन लोगों को मजबूरी के चलते इसी पानी में छठ पूजा करनी पड़ रही है.
चार दिन तक चलता है छठ पूजन
दीपावली के छठे दिन आयोजित होने वाला छठ पूजन प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा उत्सव है. दीपावली के छठे दिन से पूजन शुरू होकर अगले चार दिनों तक चलता है और तालाब व नदियों पर बने घाट पर जाकर सूर्य उपासना के साथ ही इस व्रत को पूरा किया जाता है.
व्रत में पहले दिन नहाय खाय कार्यक्रम किया जाता है, इसी दिन व्रत रखा जाता है. इसके अलगे दिन लोहंडा और खरना, तीसरे दिन संध्या अघ्र्य दिया जाता है और चौथे दिवस उषा अघ्र्य देकर व्रत को पूरा किया जाता है. भारी मात्रा में लोग एक घाट पर एकत्रित होकर नदी व तालाब में डुबकी लगाकर ढलते सूरज को अघ्र्य देकर व्रत को पूरा करते हैं.
छप्परा जिला बिहार राज्य के जितेंद्र प्रसाद ने बताया कि वह पिछले आठ वर्षों से बद्दी में छठ पूजा मनाते आ रहे हैं। हर वर्ष वह वर्धमान के निकट स्थित भूपनगर स्थान पर पूजा का आयोजन करते हैं. उन्होंने बताया कि वीरवार को यहां भूपनगर से जितेंद्र छपरा निवासी बिहार, हरि मोहन दरभंगा बिहार, पिंटू सिंह, विजय , बृज किशोर यादव, चंदन, मनीष, सुरेश निवासी बिहार, श्याम किशोर छपरा, दिलमोहन बिहार, विनित यादव, अनिल कुमार गया, संतोष छप्परा बिहार, नागेंद्र छप्परा, चंदन उत्तर प्रदेश, नागेंद्र यादव उत्तर प्रदेश, सुभाष कुमार बिहार सहित हजारों प्रवासी लोगों ने छठ पूजा की.
नहीं बन पाया पूजा घाट
पिछले 20 सालों से लोग छठ पूजा के लिए अलग-अलग स्थान ढूंढते है. लेकिन आजतक पूजा घाट नही बन पाया है. हर वर्ष उन स्थानों की साफ सफाई की जाती है और उन्हें पूजा के योग्य बनाया जाता है. कुछ समय बाद जब उन स्थानों पर झुगियां बस जाती है. तो फिर से उन्हें नए स्थाना की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ता है.