छितकुल (किन्नौर). ऊंची चोटियां, बीच-बीच में हरियाली, साथ में बहती छोटी सी बास्पा नदी और उसका शीशे जैसा चमचमाता पानी. हिन्दुस्तान के आखिरी गांव छितकुल की प्राकृतिक सुंदरता को शब्दों में बांध पाना कठिन है. लेकिन एक दूसरा पहलू भी है. यहां भी इंसान बसते हैं और वह भारतीय गणराज्य के नागरिक हैं. अपने देश और प्रदेश की सरकारों ने उन्हें तमाम उम्मीदें हैं, जिन्हें पूरा होना अभी बाकी है. आइए जानते हैं क्या चाहते हैं छितकुल के लोग अपनी सरकारों से…
सड़क बने तो रोजगार मिले
छह तरफ से पानी के स्रोतों के कारण गांव का नाम छितकुल पड़ा. तिब्बत का बार्डर यहां से 80 किमी की दूरी पर है. कभी यहां तिब्बत के लोग खरीद-बिक्री किया करते थे. गांव तक आने की सड़क तो बन चुकी है मगर इलाका अब भी काफी हद तक कटा हुआ है. गांव के उप सरपंच अरविंद नेगी कहते हैं कि यहां से उत्तराखंड को जोड़ने वाली सड़क प्रस्तावित है. सड़क बन जाए तो गंगोत्री तक जाने का वैकल्पिक मार्ग खुल जाए और गांव के नौजवानों को रोजगार मिले.
खेती के संसाधन भी यहां सीमित हैं. फाफरा, जौ, मटर और आलू की मामूली पैदावार होती
है. पर्यटन को यहां उद्योग के तौर पर विकसित कर देश-दुनिया का ध्यान भी आकृष्ट किया जा सकता है. अरविंद कहते हैं कि चुनावी मौसम में पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप लगाती हैं और बड़े-बड़े वादे भी कर जाती हैं. मगर चुनाव बाद कोई इस ओर पलट कर देखता भी नहीं.
बिजली, ईंधन, चिकित्सा और परिवहन
अरविंद नेगी बताते हैं कि यहां सर्दियों में तापमान माइनस से नीचे चला जाता है. खूब बर्फबारी होती है और गांव के लोगों को ईंधन की किल्लत से जूझना पड़ता है. कुछ लोग बताते हैं कि पिछले चुनावों में किन्नौर को मुफ्त बिजली देने के वादे हुए थे मगर सब हवाई साबित हुए. गांव के पशु चिकित्सालय में दवा लेने आई महिला निराश है. वह कहती हैं कि गरीबों को कोई कुछ नहीं देता. गांव की धनपति कहती हैं कि यहां अस्पताल नहीं है और शिमला पहुंचने तक में गंभीर रोगी की जान बचाना मुश्किल हो जाता है.
छितकुल के किसान हरी पद नेगी कहते हैं कि रोड बनाने के वादे पर उन्होंने वोट किया था. लेकिन कुछ हुआ नहीं है. गांव में 2 करोड़ 96 लाख की लागत से सिवरेज का शिलान्यास करने तीन साल पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस के विधायक जगत सिंह नेगी छितकुल आये थे. लेकिन अब तक काम शुरू भी नहीं हो पाया है. हालांकि लोग समर्थन या विरोध में किसी पार्टी का नाम लेने से बचते हैं. मगर उनकी बातें सुनकर समझा जा सकता है कि सरकारों का यहां विशेष ध्यान देने की जरूरत है.