नई दिल्ली. देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में जस्टिस सूर्यकांत का नाम तय हो गया है। मौजूदा सीजेआई भूषण रामकृष्ण गवई ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर उनका नाम कानून मंत्रालय को भेज दिया है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब केंद्र सरकार ने नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी।
वरिष्ठता के आधार पर हुआ चयन
‘Memorandum of Procedure’ के तहत सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है। फिलहाल जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।
सीजेआई गवई के 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस सूर्यकांत यह पद संभालेंगे। वे देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश होंगे और उनका कार्यकाल फरवरी 9, 2027 तक यानी करीब 15 महीने का होगा।
जस्टिस सूर्यकांत कौन हैं?
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार में हुआ था।
वे 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाई है — जिनमें अनुच्छेद 370, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Free Speech), लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण, और लैंगिक समानता से जुड़े मुकदमे शामिल हैं।
उनके कुछ उल्लेखनीय फैसले
देशद्रोह कानून पर रोक: जस्टिस सूर्यकांत उस ऐतिहासिक पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून (Sedition Law) को अस्थायी रूप से निलंबित किया और कहा कि सरकार की समीक्षा पूरी होने तक इस पर कोई नई FIR दर्ज न की जाए।
चुनावी पारदर्शिता पर जोर: बिहार के 65 लाख मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर किए जाने के मामले में उन्होंने चुनाव आयोग को जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया।
महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ावा: उन्होंने बार एसोसिएशनों — जिनमें सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन भी शामिल है — में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया।
पीएम मोदी की पंजाब यात्रा सुरक्षा जांच: 2022 में प्रधानमंत्री मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान हुई सुरक्षा चूक की जांच के लिए उन्होंने जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में समिति गठित की थी।
वन रैंक वन पेंशन (OROP): उन्होंने OROP स्कीम को संविधान सम्मत ठहराया और रक्षा सेवाओं में महिला अधिकारियों की स्थायी नियुक्ति (Permanent Commission) के मामलों की सुनवाई भी की।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) केस: वे सात-सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने 1967 के एएमयू के फैसले को पलटते हुए संस्थान की अल्पसंख्यक दर्जा पुनर्विचार का रास्ता खोला।
पेगासस जासूसी मामला: जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ में भी शामिल थे जिसने Pegasus Spyware मामले में साइबर विशेषज्ञों की जांच समिति गठित की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि “राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को फ्री पास नहीं दिया जा सकता।”
जस्टिस सूर्यकांत का अब तक का कार्यकाल न्यायिक स्वतंत्रता, पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट से लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को और मजबूती मिलने की उम्मीद की जा रही है।
