नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को Enforcement Directorate (ED) पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि एजेंसी अपनी सीमाओं से बाहर निकलकर काम कर रही है और देश के संघीय संरचना का उल्लंघन कर रही है। यह टिप्पणी तब आई जब अदालत ने तमिलनाडु सरकार द्वारा संचालित टीएएसएमएसी (Tamil Nadu State Marketing Corporation) के खिलाफ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर स्टे ओर्डर दे दिया।
ED पर गंभीर आरोप: सीमाएं लांघने का दावा
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए Additional Solicitor General S.V. Raju से कहा कि आपकी ED सभी सीमाएं लांघ रही है। यह टिप्पणी उस वक्त आई जब अदालत TASMAC और तमिलनाडु सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ईडी के छापे को मनमाना और असंवैधानिक बताया गया।
क्या ED कर रही है राज्यों की भूमिका में हस्तक्षेप?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ED की कार्रवाई भारत के संघीय ढांचे (federalism) की भावना के खिलाफ है। अदालत ने कहा कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक ED TASMAC के खिलाफ कोई भी जांच या छापेमारी नहीं कर सकती।
ED का दावा: मामला ₹1000 करोड़ से अधिक का स्कैम
ED की तरफ से कोर्ट में तर्क दिया गया कि यह मामला ₹1000 करोड़ से ज्यादा के क्रप्शन से जुड़ा हुआ है और इसमें एंजेसी PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के तहत कार्रवाई की है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि यह राज्य के अधिकार क्षेत्र का मामला है और केंद्र सरकार की एजेंसी इसमें सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
Kapil Sibal ने रखा मजबूत पक्ष, कहा- ED का दखल गलत
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता Kapil Sibal और अमित आंनद तिवारी ने दलील दी कि राज्य सरकार पहले से ही 2014 से liquor license allocation पर 40 से अधिक FIRs दर्ज कर चुकी है। अब जबकि मामला पहले से जांच में है, तो ED की parallel action न सिर्फ duplicate investigation है, बल्कि राज्य सरकार की स्वायत्तता में हस्तक्षेप भी है।
High Court का आदेश भी किया चैलेंज
तमिलनाडु सरकार और टीएएसएमएसी ने मदरास हाई कोर्ट के 23 अप्रैल के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें ED को जांच जारी रखने की अनुमति दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक ऐसा अपराध है जो पूरे देश की जनता के खिलाफ है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतर-सरकारी अधिकारों का मुद्दा उठाते हुए केंद्र की एजेंसी को फिलहाल रोकने का आदेश दिया।