नई दिल्ली. जैसे-जैसे 2025 का साल खत्म हो रहा है, भारत की स्कूल परीक्षा व्यवस्था एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। यह साल न तो महामारी जैसे अचानक बदलावों का गवाह बना और न ही परीक्षाएं रद्द हुईं, बल्कि 2025 वह साल रहा जब साल में सिर्फ एक बार होने वाली हाई-स्टेक बोर्ड परीक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे लेकिन निर्णायक रूप से बदला गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत केंद्र सरकार और शिक्षा बोर्ड्स ने बोर्ड परीक्षाओं को लचीला, कम तनावपूर्ण और competency-based बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
एक मौका, एक किस्मत… अब नहीं
दशकों तक भारत में बोर्ड परीक्षा का मतलब था,एक तारीख, एक प्रश्नपत्र और एक ही मौका। बीमारी, पारिवारिक संकट या खराब दिन का असर पूरे करियर पर पड़ सकता था। अब इसी सोच को बदला जा रहा है। NEP 2020 और नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) की सिफारिशों के अनुसार, 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं साल में कम से कम दो बार कराई जाएंगी और छात्रों को बेहतर स्कोर को रखने का विकल्प मिलेगा। 2025 के अंत तक यह नीति सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रही, बल्कि अमल की स्पष्ट रूपरेखा बन चुकी है।
CBSE ने दिखाई राह
देश के सबसे बड़े बोर्ड CBSE ने इस बदलाव की अगुवाई की है।
2025-26 सत्र से CBSE 10वीं की बोर्ड परीक्षा दो बार कराएगा—
पहली परीक्षा: फरवरी (अनिवार्य)
दूसरी परीक्षा: मई (वैकल्पिक, सुधार के लिए)
पहली परीक्षा का रिजल्ट अप्रैल में और दूसरी का जून में आएगा। फाइनल मार्कशीट में दोनों में से बेहतर स्कोर दर्ज होगा।
CBSE ने साफ किया है कि दूसरी परीक्षा जरूरी नहीं, बल्कि केवल सुधार का अवसर है। दोनों परीक्षाओं का सिलेबस और पैटर्न समान रहेगा। आने वाले वर्षों में यही मॉडल 12वीं पर भी लागू होने की उम्मीद है।
राज्य बोर्ड भी हुए शामिल
CBSE के बाद कई राज्य बोर्ड्स ने भी 2025 में इसी दिशा में कदम बढ़ाए—
मध्य प्रदेश: 10वीं और 12वीं की परीक्षा साल में दो बार
गुजरात (GSEB): दोनों कक्षाओं के लिए दो बोर्ड परीक्षा, बेस्ट स्कोर लागू
हरियाणा: दूसरी परीक्षा को तनाव कम करने वाले विकल्प के रूप में अपनाया
राजस्थान: 2026-27 से CBSE मॉडल अपनाने की घोषणा
छत्तीसगढ़: 2025 में मार्च और जून-जुलाई में दो बोर्ड परीक्षा आयोजित
वहीं पश्चिम बंगाल पहले ही 12वीं में सेमेस्टर सिस्टम अपनाकर एकल परीक्षा का दबाव कम कर चुका है।
कर्नाटक का सबसे बड़ा प्रयोग: तीन परीक्षाएं
कर्नाटक इस बदलाव में सबसे आगे निकल गया है।
यहां साल में तीन बार बोर्ड परीक्षा का विकल्प दिया गया है। छात्र एक, दो या तीनों परीक्षाओं में बैठ सकते हैं और सबसे अच्छा स्कोर फाइनल माना जाएगा।
इस मॉडल ने “रेगुलर” और “सप्लीमेंट्री” परीक्षा का फर्क ही खत्म कर दिया है।
क्यों जरूरी हुआ यह बदलाव?
सरकार और शिक्षा अधिकारियों के अनुसार, यह कदम—
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए
समान अवसर देने के लिए
और वास्तविक सीख को आंकने के लिए जरूरी था
NEP 2020 साफ कहती है कि बोर्ड परीक्षा रट्टा नहीं, बल्कि मुख्य क्षमताओं (core competencies) को परखे और छात्रों को खुद को साबित करने के कई मौके दे।
2025 में क्या बदला?
2025 वह साल रहा जब—
बोर्ड्स ने स्पष्ट टाइमलाइन तय की
यह साफ किया कि दूसरी परीक्षा वैकल्पिक है
सप्लीमेंट्री परीक्षाओं को नए सिस्टम में समाहित किया गया
स्कूलों ने छात्रों को पहली परीक्षा को मुख्य और दूसरी को सेफ्टी नेट मानने की सलाह देनी शुरू की
तमिलनाडु का अलग रास्ता
जहां देशभर में 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं बढ़ाई जा रही हैं, वहीं तमिलनाडु सरकार ने उल्टा फैसला लिया है।
अक्टूबर 2025 में राज्य सरकार ने 11वीं (प्लस वन) की बोर्ड परीक्षा खत्म करने का आदेश जारी किया।
अब 11वीं का मूल्यांकन स्कूल स्तर पर होगा और सिर्फ 12वीं के अंक बोर्ड मार्कशीट में दिखेंगे।
सरकार का मानना है कि 11वीं की बोर्ड परीक्षा से दबाव बढ़ा, लेकिन सीख में खास सुधार नहीं हुआ।
2025 भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अब बोर्ड परीक्षा “एक दिन की किस्मत” नहीं, बल्कि सीखने और सुधार की निरंतर प्रक्रिया बन रही है—जहां छात्र को गलती सुधारने का मौका मिलेगा, न कि एक गलती में सब कुछ खोने का डर।
