शिमला. हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी 14 साल से अलग तरह का वनवास काट रहे हैं. वनवास पेंशन के लिए. उम्र के आखिरी पड़ाव पर आकर सेवानिवृत होते हैं तो ताकते रहते हैं सरकार की ओर. जब तक नौकरी थी तनख्वाह मिलती रही. लेकिन सेवानिवृति के बाद क्या करेंगे. क्योंकि पेंशन तो बन्द है.
14 साल पहले आया था फैसला
14 साल पूर्व साल 2003 में हिमाचल सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया और कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी. तब से लेकर कर्मचारी लगातार सरकार से गुहार लगा रहे हैं. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. आज जब कर्मचारियों की चुनाव ड्यूटियां लगीं तो सब के मन में एक ही सवाल है. सरकार… जिसके लिए चुनावी ड्यूटी दे रहे हैं वह तो चुनते ही 84 हजार की पेंशन के हकदार हो जाएंगे लेकिन 30-40 साल सरकारी नौकरी करने के बाद भी उन्हें कब यह तोहफा मिलेगा.
सोशल मीडिया पर मुहिम तेज
इस बार दोनों बड़े दलों कांग्रेस और भाजपा से राज्य के करीब 7 लाख कर्मचारियों को उम्मीद है कि सत्ता में आते ही वह कर्मचारियों की पीड़ा समझेंगे और उन्हें पेंशन का हकदार बनाएंगे. यूं तो कई वर्षों से लगातार कर्मचारी अलग-अलग संगठनों और मंचों से पेंशन बहाल करने के लिए आवाज उठा रहे हैं लेकिन बीते माह से विशेष कर सोशल मीडिया के माध्यम से इस मुहिम को और अधिक तेज कर दिया है. सोशल मीडिया के जरिये कर्मचारी अपने मन की बात को नेताओं तक पहुंचाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
फेसबुक पर बने कर्मचारियों के पेज पर लगतार कर्मचारी यही कह रहे हैं कि जिन प्रत्याशियों के लिए चुनावी ड्यूटी देने वह जा रहे हैं वह चुनाव जीतने के बाद भले ही एक दिन के लिए विधायक बने, पेंशन के हकदार बन जाएंगे तो फिर कर्मचारियों को इससे महरूम क्यों रखा जा रहा है.
पार्टियों ने किए वादे
कर्मचारियों की नब्ज को टटोलते हुए कांग्रेस ने इस मांग को अपने घोषणापत्र में शामिल कर दिया सोने पे सुहागा यह कि 4-9-14 को भी तुरंत लागू करने का वादा कर डाला. कर्मचारी कांग्रेस की ओर झुक गए तो भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री फेस प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने भी तुरंत सत्ता में आते ही कर्मचारियों की बन्द पड़ी पेंशन को बहाल करने की घोषणा कर डाली. अब कर्मचारी असमंजस में है कि सही मायने में कौन उनकी इस बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा करेगा. बहरहाल यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि जिसको कर्मचारियों का वोट मिले हिमाचल में वही सरकार बनाएगा.