नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती। दरअसल, एक जमानत याचिका पर 27 बार सुनवाई स्थगित होने के बाद कोर्ट ने आरोपी लक्ष्य तंवर को राहत दी और हाई कोर्ट की कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी की।
27 बार सुनवाई टालना कैसे जायज?
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सख्त लहजे में कहा कि हाई कोर्ट जमानत जैसे गंभीर मसले पर 27 बार सुनवाई टालकर व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कैसे कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर ही लक्ष्य तंवर को जमानत दे दी और मामले को हाई कोर्ट के समक्ष बंद कर दिया।
सीबीआई धोखाधड़ी मामला, 33 आपराधिक केस
लक्ष्य तंवर पर सीबीआई द्वारा दर्ज धोखाधड़ी मामले के अलावा पहले से IPC की कई धाराओं में 33 केस दर्ज हैं। हाई कोर्ट इस आधार पर जमानत देने में हिचकिचा रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चाहे कितने भी केस हों, जमानत याचिका पर उचित समय में फैसला देना अदालत का कर्तव्य है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश: विलंबित न्याय, न्याय से इनकार के समान है
सीजेआई गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर स्थगन के मामलों में दखल नहीं देता, लेकिन जब बात व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हो, तब न्यायिक प्रणाली की तेजी और पारदर्शिता सर्वोपरि हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
निचली अदालतें जमानत मामलों में टालमटोल न करें।”
संविधान के तहत किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए।”
“बेल याचिका पर जल्द फैसला देना अदालत की प्राथमिकता होनी चाहिए।”
यह फैसला क्यों है अहम?
इस फैसले से देश की judicial accountability और personal liberty पर बड़ा संदेश गया है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि जमानत कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है, जब तक कि किसी के खिलाफ दोष सिद्ध न हो।