नई दिल्ली. आखिरकार गुजरात के मुख्यमंत्री के लिए विजय रुपाणी के नाम पर मुहर लग ही गई. शुक्रवार को गांधीनगर में भाजपा के पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में हुए बैठक में विजय रुपाणी के नाम पर सहमति बन गई है. नतीजों के बाद मुख्यमंत्री के नाम पर मंथन कर रही भाजपा ने आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री पर ही अपना भरोसा जताया. वहीं नितिन पटेल को फिर से उपमुख्यमंत्री का पद मिला है. बैठक में पर्यवेक्षक अरुण जेटली और सरोज पांडे के साथ विजय रूपाणी भी मौजूद थे. इससे पहले कई नामों पर चर्चा चल रही थी. स्मृति इरानी, नितिन पटेल जैसे नामों की चर्चा हो रही थी, लेकिन अफवाहों पर विराम लगाते हुए भाजपा ने विजय रुपाणी के नाम पर मुहर लगा दी है.
जानिए विजय रुपाणी की असली कहानी
2014 का वह समय जब मोदी-शाह की जोड़ी पूरे भारत में भाजपा का परचम लहराने निकली थी. उसी समय विजय रुपाणी गुजरात भाजपा के अध्यक्ष के रूप में 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की विजय हो इसके प्रयास में लगे हुए थे. जिसका लाभ उन्हें मिला भी 2014 के उपचुनाव में जीतने के बाद, पहली बार विधानसभा में पहुंचने वाले विजय को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया.
रंगून से आए रुपाणी
संघ और मोदी के करीबी विजय रुपाणी के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज है लेकिन यह जीत इतनी आसान न थी. सन 1956 में मयानमार के रंगून में जन्मे विजय एक व्यापारी परिवार से ताल्लूक रखते हैं. 1960 में उनका पूरा परिवार गुजरात के राजकोट में लौट आया. बीए, एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति सीखने के लिये अखिल भारतीय परिषद् (एबीवीपी) में शामिल हो गए. उसके बाद विजय काफी लंबे समय तक राजकोट के मेयर भी रहे. बता दें कि विजय आपातकाल के समय जेल भी जा चुके हैं. नरेंद्र मोदी से तभी से परिचय हुआ, ऐसा माना जाता है.

अमित शाह और मोदी ने बनाया मुख्यमंत्री
गुजरात के 16 वें मुख्यमंत्री ने 1980 में भाजपा की सदस्यता ली थी. रुपाणी आनंदीबेन सरकार में ट्रांसपोर्ट, वाटर सप्लाई, श्रम और रोजगार विभाग के कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. 2006 में भाजपा ने रुपाणी को राज्यसभा का सांसद बनाया. जैन बनिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजय रुपाणी से पहले आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री थीं. 2014 में उनके इस्तीफे के बाद नितिन पटेल का नाम भी उछाला जा रहा था लेकिन अमित शाह और मोदी की पहली पसंद बने विजय रुपाणी.

पटेल आंदोलन का परिणाम रुपाणी
ऐसा माना गया कि इनके मुख्यमंत्री बनने पर पटेल आंदोलन और दलित आंदोलन कमजोर होने लगेगा और उनके नाम से किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद उन्होंने गुजरात भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. रुपाणी के चयन को पटेल आंदोलन के परिणाम स्वरुप लिया गया फैसला भी कह सकते हैं. सौराष्ट्र का इलाका पटेलों का सेंटर माना जाता है और उनकी राजनीति यहां से प्रभावित होती है.
क्यों छोड़ना चाहते थे राजनीति!
एक समय था जब रुपाणी राजनीति छोड़ना चाहते थे, जब उनका एक बेटा छत से गिरकर मर गया था. उसके बाद परिवार ने उन्हें संभाला. अभी भी उनके बेटे के नाम पर एक ट्रस्ट चलता है जो गरीब बच्चों की मदद करता है. उनकी बेटी लंदन में है और एक बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है. रुपानी जॉगिंग के भी शौकिन हैं, हर दिन लगभग दो घंटे जॉगिंग करते हैं. बता दें कि वह राजकोट वॉकिंग क्लब के अध्यक्ष भी हैं.