शिमला. कांगड़ा की चाय निर्यातकों की अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में और ज्यादा मजबूत होने वाली है. कांगड़ा चाय को अब भौगोलिक संकेतक (GI Tag) का दर्जा मिल गया है. कांगड़ा चाय को जी.आई. टैग यूरोपियन यूनियन से मिला है. इससे कांगड़ा चाय उत्पादकों की आर्थिकी मजबूत होगी.
अब तक कांगड़ा चाय सिर्फ कोलकाता तक ही निर्यात होती है. लेकिन अब जी.आई. टैग मिलने के बाद हिमाचल की चाय यूरोप तक निर्यात हो सकेगी. यूरोपियन यूनियन के ट्विटर अकाउंट से कांगड़ा की चाय को जीआई टैग मिलने की जानकारी दी गई है. उन्होंने लिखा कि कांगड़ा चाय को अब GI टैग मिल गया है. यूरोपीय संघ और भारत दोनों GI पर जोर देते हैं. साथ ही दोनों स्थानीय भोजन को महत्व देते हुए स्थानीय परंपराओं को बनाए रखते हैं. इसके अलावा वह समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करके उसे बढ़ावा देते हैं.
अब यूरोपियन मार्केट में भी बिकेगी कांगड़ा की चाय
कांगड़ा चाय पश्चिमी हिमालय में धौलाधार पर्वत श्रृंखला की ढलानों पर समुद्र तल से 900-1400 मीटर ऊपर उगाई जाती है. इसका स्वाद काफी बेहतरीन होता है. कांगड़ा चाय की खेती पालमपुर, बैजनाथ सहित धर्मशाला के आसपास के क्षेत्रों में की जाती है.वहीं इस टैग के मिलने से कांगड़ा चाय के व्यापार से जुड़े लोग खुश हैं. इस टैग के बाद कांगड़ा चाय को यूरोपीय बाजार में एंट्री मिलेगी. इससे पहले 2005 में इसे भारत का GI टैग मिला था.
कांगड़ा चाय की खासियत
स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह चाय हरी और काली दोनों प्रकार की होती है. इसमें काली वाली का स्वाद मीठा होता है, जबकि हरी का स्वाद सुगंधित लकड़ी की तरह होता है. कोरोना काल में तो कुछ एक्सपर्ट्स ने यहां तक दावा कर दिया था कि यह चाय वायरस से लड़ने में शरीर की मदद करती है.
व्यापारियों में खुशी की लहर
कांगड़ा चाय को जी.आई. टैग मिलने पर अब इस खास चाय की बेहतरीन खुशबू यूरोप के देशों में बिखरेगी. अब तक कांगड़ा की चाय से करीब चार हजार किलोग्राम चाय का निर्यात कोलकाता तक होता है. GI टैग मिलने के बाद कांगड़ा से चाय सीधा यूरोपियन देशों में निर्यात हो सकेगी. यूरोपियन यूनियन के मानकों पर खरा उतरने के बाद कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिला है. इससे कांगड़ा में चाय वालों को खासी राहत मिली है.
