शिमला. हिमाचल का बागवान सेब पर इंपोर्ट-ड्यूटी नहीं बढ़ने और इनपुट कॉस्ट दोगुना होने से मुश्किल में है. बीते साल सेब उद्योग को बचाने के लिए 2 महीने तक आंदोलन करने वाले बागवान नई सरकार बनते ही फिर से लामबद्ध होने लगे हैं. इसी कड़ी में बागवानों ने आज सभी ब्लॉक में SDM और DC शिमला के माध्यम से मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को 12 सूत्रीय मांगपत्र सौंपा.
सरकार से बागवानों की प्रमुख मांगें-
प्रदेश के बागवान विदेशी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी 100 फीसदी करने, सेब का समर्थन मूल्य देने, पैकिंग को यूनिवर्सल कार्टन अनिवार्य करने, खाद व दवाइयां सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने, स्टोर, सरकारी उपक्रम HPMC और हिमफेड के पास लंबित पड़ी बकाया राशि का भुगतान करने और कश्मीर की तर्ज पर मंडी मध्यस्थता योजना शुरू करने की मांग कर रहे हैं.
प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान का मुआवजा देने की मांग
इसके अलावा सरकारी क्षेत्र में CA (वातानुकूलित) APMC कानून को सख्ती से लागू करने, बैरियरों पर मार्केट फीस वसूली बंद करने, किलो के हिसाब से सेब की बिक्री और ओलावृष्टि व वर्षा, असामयिक बर्फबारी, सूखा जैसी आपदाओं से बागवानों को हुए नुकसान का सरकार द्वारा मुआवजा देने की मांग उठाई.
समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग
प्रदेश के बागवान सेब का समर्थन मूल्य तय करने की मांग भी लंबे समय से करते आ रहे हैं, क्योंकि बीते 3-4 सालों में सेब तैयार करने पर आने वाली लागत दोगुना बढ़ गई है, मगर सेब के रेट आज भी 10 साल पहले वाले मिल रहे हैं./
इनपुट कॉस्ट बढ़ने से परेशान
बीते 8-9 सालों के दौरान आयात शुल्क 50 फीसदी होने से सेब का आयात दोगुना हो गया है. भारत के बाजारों में इस वक्त व्यापारी दुनिया के 44 देशों के सेब का आयात कर रहे हैं. इस वजह से हिमाचल समेत जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों को सेब के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
इसे देखते हुए 2014 में लोकसभा चुनाव व PM बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने भी प्रदेश के बागवानों से सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का वादा किया था, मगर यह वादा आज तक पूरा नहीं किया गया.