ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि स्टेडियम में अच्छी तादाद में दर्शक इंडिया-इंडिया की सदाएं बुलंद कर रहे हों और खेल क्रिकेट का न होकर फ़ुटबॉल का हो.
जी हाँ, दर्शकों को पता था कि भारत टूर्नामेंट से बाहर हो चुका है और उसके सामने घाना जैसी मज़बूत टीम है. लेकिन फिर भी दर्शक जिस तरह से भारतीय टीम का हौसला बढ़ा रहे थे, वह देखने लायक था. भारत अपने तीसरे मैच में घाना के खिलाफ़ खेल रहा था. भारतीय टीम बहुत पीछे थी लेकिन दर्शकों का जूनून उतना ही सिर चढ़कर बोल रहा था. हालाँकि ये अलग बात है कि स्टेडियम में आधे से ज़्यादा स्कूली छात्र थे जिन्हें सरकार ने टिकट बांटे थे. लेकिन यह भी सच है कि स्टेडियम के बाहर भी फ़ुटबॉलप्रेमी टिकट पाने के लिए पूरी कोशिश में लगे थे ताकि मैच देख सकें.
टिकट मिलने में घालमेल
एक तरफ़ सरकार पूरी कोशिश कर रही थी कि भारत में फ़ुटबॉल ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे. जिसके लिए बाक़ायदा सरकार ने गाँवों तक बच्चों को फ़ुटबॉल बांटे. संसद भवन के बाहर भी सांसद और स्पीकर फ़ुटबॉल खेलते नज़र आए. सरकार ने स्कूली छात्रों को फ़ुटबॉल मैच के लिए टिकट मुफ़्त में बांटे ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग स्टेडियम में पहुँचकर खिलाड़ियों की हौसला अफज़ाई करें.
लेकिन जब मैच के पहले टिकट काउंटर पर मैं पहुंचा तो पता चला कि ऑफ़ लाइन टिकट ही नहीं है. जबकि मैच के दौरान एक स्टैंड ही ख़ाली पड़ा था. टिकट, काउंटर पर तो नहीं लेकिन ब्लैक में आसानी से मिल जा रहा था. बस आपके जेब में पर्याप्त पैसे होने की शर्त थी. वहां टिकट बस उन्ही को मिल मिल रहे थे जो ऑनलाइन बुक करके आए थे या फिर ब्लैक में ले रहे थे.
टिकट ब्लैक करने वाले आसानी से टिकट काउंटर के पास ही अपनी मनमर्ज़ी से टिकट की बोली लगा रहे थे. वहां कुछ लोग जिनके पास पर्याप्त पैसे थे वह तो ब्लैक टिकट लेकर अंदर पहुँच गए, लेकिन कुछ ऐसे भी थे कि जिनके अंदर फ़ुटबॉल की दीवानगी तो थी लेकिन इतने ज़्यादा पैसे न होने की वजह से उन्हें निराश ही लौटना पड़ा.
अव्यवस्था का आलम
वैसे तो सरकार की ओर से पीने के पानी से लेकर खाने तक का इंतज़ाम किया गया था. लेकिन फ़ीफ़ा विश्व कप टूर्नामेंट को देखते हुए व्यवस्थाएं बहुत लचर थीं. ज़मीनी तौर पर इंतज़ाम शायद ही अच्छे ढंग से अमल में लाया गया.
टिकट के साथ खाने का कूपन भी दिया गया था. मैच का पहला हाफ़ समाप्त हुआ. मैं कूपन लेकर फ़ूड काउंटर के पास गया, लेकिन वहां बोला गया कि इसके लिए नीचे जाना होगा. मैं जब नीचे गया तो वहां का आलम शर्म की इंतेहा पार कर रहा था. वहां काउंटर पर बस दो लोग दिखे और लोग फ़ूड पैकेट के गत्तों को नोच रहे थे. जिन्हें पैकेट मिला वो लेकर भागे और जो नहीं पा सके वो गत्तों को रौंदते हुए हवा में पैकेट उड़ा रहे थे और बाक़ी हाथ में टोकन लेकर नज़ारा देख रहे थे. ऐसा करने से उन्हें कोई रोक भी नहीं रहा था.
हैरानी की बात तो यह है कि जब लोग वापस मैच देखने के लिए प्रवेश करने लगे तो उन्हें यह टोककर रोका गया कि दोबारा इंट्री नहीं मिल सकती. जबकि ऊपर इंतज़ाम में लगे लोगों ने ही नीचे का रास्ता दिखाया था. इसके बाद फ़ूड टोकन जमा करने के बाद ही दोबारा प्रवेश मिल सका.
इससे पहले भी कॉमनवेल्थ जैसा बड़ा आयोजन अपने देश में हुआ था और उसमे जो हुआ था वो किसी से छुपा नहीं है. ऐसा नहीं है कि इन छोटी-छोटी बातों को बताकर मैं बस बुराई ही गिना रहा हूँ. बल्कि यहाँ समझने वाली बात है कि हम फ़ीफ़ा फ़ुटबॉल में जगह भी नहीं बना पाते और अब, जब फ़ीफ़ा अंडर-17 विश्व कप की मेज़बानी मिली है और आगे फ़ीफ़ा अंडर-20 विश्व कप मेज़बानी की मांग भी हम कर रहे हैं तो ऐसे में इसके लिए ज़मीनी स्तर तक बहुत कुछ करना होगा.
ऑफिशियल फैन शॉप
ऐसा नहीं है कि महज़ वहां अव्यवस्था ही थी, कुछ ऐसा भी था जो लोगों को आकर्षित कर रह था. फ़ुटबॉलप्रेमियों के लिए ऑफिशियल फैन शॉप भी लगाई गई थी. जिसमे फ़ुटबॉल से जुड़ी टी-शर्ट वगैरा मील रही थीं. सबसे अच्छी बात यह थी कि लोग बड़ी संख्या में ख़रीद भी रहे थे. यानी कुल मिलाकर दर्शकों की फ़ुटबॉल के प्रति दीवानगी देखी जा सकती थी. दर्शंकों की संख्या का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जेएलएन मेट्रो स्टेशन पर टोकन लेने के लिए अलग से काउंटर लगाए गए थे.
अपनी टीम का समर्थन
जब लोगों को पता हो कि लोगों को पता हो टीम बाहर हो गई है और टिकट भी ऑफ़लाइन नही मिल रहे उसके बाद भी स्टेडियम पहुंचकर लगातार अपनी टीम का हौसला बढ़ाना दर्शकों का फ़ुटबॉल के प्रति दीवानगी दर्शा रहा था. स्टेडियम में नौजवान, बच्चे, महिलाएं सहित बूढ़े भी नज़र आ रहे थे जो भारतीय टीम का हौसला बढ़ाने से पीछे नहीं हट रहे थे.
एक समय भारत 4-0 से था और मैच ख़त्म होने में महज़ चंद मिनट ही बाक़ी थे. लेकिन दर्शक भारतीय टीम का लगातार हौसला बढ़ा रहे थे. यहाँ तक हारने के बाद भी लोग खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे ताकि खिलाड़ियों का हौसला न टूटे. खिलाड़ियों ने भी दर्शकों की हौसला अफज़ाई को महसूस किया और मैच ख़त्म होने के बाद दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया.
वहीं इसका श्रेय कहीं न कहीं इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) को भी जाना चाहिए, जिसने लोगों का फ़ुटबॉल की ओर ध्यान आकर्षित किया.
कुल मिलाकर भारत में फ़ुटबॉल अचानक से ही क्रिकेट के जितना लोकप्रिय तो नहीं हो जाएगा लेकिन जैसा जूनून मैंने देखा हम यह कह सकते हैं एक दिन लोग फ़ुटबॉल के बारे में भी वैसे ही चर्चा करेंगे जैसे क्रिकेट पर करते है और हमारी नेशनल टीम फ़ीफ़ा के टूर्नामेंट में भी पहुँचने में कामयाब होगी.