नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार से कहा है कि दिव्यांगजनों और दुर्लभ आनुवंशिक रोगों से पीड़ित लोगों पर की जाने वाली आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियों को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने पर विचार किया जाए। अदालत ने सुझाव दिया कि ऐसा कानून SC-ST एक्ट की तरह होना चाहिए, ताकि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई संभव हो सके।
सोशल प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक कंटेंट रोकने को स्वतंत्र निकाय की जरूरत
चीफ जस्टिस सुर्या कांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अभद्र, आपत्तिजनक और अवैध कंटेंट की निगरानी और नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और स्वायत्त संस्था की आवश्यकता है।
सरकार का जवाब: हंसी-मजाक किसी की गरिमा की कीमत पर नहीं
सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इस दिशा में दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है। उन्होंने कहा, “हास्य किसी की गरिमा और सम्मान की कीमत पर नहीं होना चाहिए।”
शिकायत करने वाली संस्था SMA Cure Foundation
यह मामला SMA Cure Foundation द्वारा दाखिल याचिका से जुड़ा है, जो Spinal Muscular Atrophy से पीड़ित लोगों के लिए काम करती है। याचिका में बताया गया कि भारतीय डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कॉमेडियंस द्वारा की गई टिप्पणियां दिव्यांगों की गरिमा का अपमान करती हैं।
जिन कॉमेडियंस के नाम आए सामने
अदालत में जिन सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स और कॉमेडियंस के नाम उल्लेखित हुए, उनमें शामिल हैं:
समय रैना
विपुल गोयल
बलराज परमारजीत सिंह घई
सोनाली ठक्कर
निशांत जगदीश तंवर
अदालत ने निर्देश दिया कि ये सभी भविष्य में अपने व्यवहार और शब्दों को लेकर सतर्क रहें।
कॉमेडियंस को मिला सामाजिक दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि संबंधित कॉमेडियन और कंटेंट क्रिएटर्स अब हर महीने दो शो आयोजित करें, जिनमें दिव्यांगों की सफलता की कहानियां और प्रेरणादायक अनुभव साझा किए जाएं। इन कार्यक्रमों से मिलने वाली राशि का उपयोग विशेष रूप से Spinal Muscular Atrophy पीड़ितों के इलाज के लिए किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऑनलाइन व्यवहार की मर्यादा और संवेदनशील विषयों पर मज़ाकिया कंटेंट की सीमाओं पर एक बड़ी बहस को जन्म देती है। डिजिटल स्पेस में गरिमा और संवेदनशीलता सुनिश्चित करने के लिए अब जल्द ही बड़ी नीतिगत कार्रवाई देखने को मिल सकती है।
