सब्जियों और राजनीति में अगर कोई संबंध है तो वो सबसे ज्यादा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिखता है जहां कभी प्याज़ के दाम पर सरकार तक गिर चुकी है। राष्ट्रीय मीडिया की मौजूदगी और पत्रकारों के आलस के चलते, दिल्ली में सब्जी की कमी या मँहगाई, नेशनल हैडलाइन बन जाती है।
आजकल राष्ट्रीय मीडिया के ‘सब्जी-समाचार’ का हीरो है टमाटर। सिर पर ताज वाली इस गोल-मटोल सब्जी ने दिल्ली की रसोईयों का रस चुरा लिया है। राजधानी में 80-100 रुपये किलो तक बिक रहा टमाटर दिल्लीवालों का दिल जला रहा है। लेकिन यही टमाटर कुछ लोगों के चेहरों पर मुस्कान भी लेकर आया है। हिमाचल के लोगों के लिये टमाटर इस बार सेब साबित हो रहा है।हिमाचली सेब की कहानी तो सबको पता है, पर प्रदेश की गोभी भी मैदानी इलाकों को गर्मी के महीनों में गोभी परांठा खाने का मौका देती रहती है। यूँ देखें तो हिमाचल प्रदेश के फल और सब्जियां दिल्ली के बाजारों की शोभा बढ़ाते ही रहते हैं। अदरक, टमाटर और लहसुन की भी बड़ी खेप हिमाचल से ही जाती है। हरियाणा और पंजाब से सटे हिमाचल के सोलन और सिरमौर जिले टमाटर उत्पादन के मामले में अव्वल नंबर पर हैं। इस बार बाढ़-सूखे के चलते मैदानी इलाकों में टमाटर की फसल उम्मीद से कम हुई है, इसलिए हिमाचली टमाटर की मांग और बढ़ गयी है। इस वक्त किसानों की पैदावार देखते ही देखते बिक जा रही है और मुंह-मांगे दाम मिलने से सोलन-सिरमौर के टमाटर उत्पादकों के चेहरे दमक रहे हैं।
गुरु गोविंद सिंह के बनाये पांवटा साहिब गुरुद्वारे के इलाके से सिरमौर जिले की सीमा शुरू होती है। तीसेक किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई के बाद कफोटा से ही सड़क पर लगे टमाटर के ढ़ेर दिखने शुरू हो जाते हैं। शिल्ला गाँव बस स्टैंड पर, एक ऐसे ही ढेर के पास रुककर बात करते हैं। शिल्ला-डाबरा के किसान रामस्वरूप खुशी खुशी बताते हैं इस बार पीक टाइम पर 25 किलो की एक क्रेट का दाम 17 से 1800 तक भी गया है, लेकिन किसान को थोड़ा कम, यानी 13-14 सौ प्रति क्रेट पर ही सब्र करना पड़ा, बाकी का मुनाफ़ा व्यापारियों की जेब में गया।
आम तौर पर किसान टमाटर खेत से हाईवे तक ले आते हैं, जहां प्रति क्रेट की दर से लाये गए माल का हिसाब हो जाता है। सड़क से ही व्यापारियों की गाड़ियां उन्हें लादकर रातभर का सफर तय करके सुबह दिल्ली पहुंचा देती हैं। किसान को थोड़ा कम सही पर घर बैठे पैसा मिल जाता है। आस-पास के कुछ और किसान बताते हैं कि वे लोग अपना माल सीधे मंडी ले जाते हैं। ख़ुद गाड़ी किराए पर लेने के बजाय रूट पर रेगुलर ढुलाई करने वाली गाड़ियों की मदद ज्यादा ली जाती है। हर क्रेट पर 70 से 100 रुपये ढुलाई लगती है, बाकी सब अपनी बचत। कफोटा से शिलाई तक रास्ते भर ऐसे दर्जनों पिकअप पॉइंट्स दिखते हैं जहां टमाटर की क्रेट लिए दो-दो, चार चार किसानों के समूह, अपने माल की लदाई के लिए बैठे मिलते हैं।