शिमला. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनों ने अपनों के ही खिलाफ बगावत छेड़ दी है. कांग्रेस व भाजपा दोनों दलों में बागी बने नेताओं में आर-पार की जंग शुरू हो गई है. कहीं दामाद और ससुर आमने-सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में हैं, तो कहीं भाभी देवर के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई है.
कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के बीच अंर्तकलह व आपसी मतभेद नामांकन भरने के आखिरी दिन तक भी नहीं मिटे. बल्कि बगावत करने वालों की फेहरिस्त और भी लंबी हो गई. फिर चाहे हाईकमान की ओर से टिकट न मिलने की नाराजगी हो या फिर अपने संगठन में अनदेखी की वजह. आलम यह है कि कांग्रेस हो या भाजपा टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी हर जगह नजर आ रही है और बागियों ने भी मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है.
भाभी को टिकट मिलने पर देवर के बगावती सुर
यदि बात करें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की तो उनके सगे संबंधी पहले ही उनसे किनारा कर भाजपा का दामन थाम चुके थे. हाल ही में भाजपा में शामिल हुई उनके साले की पत्नी ज्योति सेन को कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिला है. मगर भाजपा में पिछले साल शामिल हुए उनके देवर पृथ्वीसेन को यह बात रास नहीं आई और बगावत पर उतर आए. नतीजतन पृथ्वीसेन ने अपनी भाभी ज्योति सेन के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सोमवार को पर्चा भर दिया है.
यह राजघराना अनदेखी की वजह से कांग्रेस से तो पहले ही नाराज चल रहा था, लेकिन अब भाजपा में शामिल होने के बाद तो परिवार में ही फूट पड़ गई है. पृथ्वी के नामांकन भरने के बाद भाजपा की दिक्कतें बढ़ गई है और अब एक ही परिवार में वोट का बंटवारा हो सकता है. जो कि कांग्रेस उम्मीदवार के लिये फायदेमंद साबित हो सकता है.
पृथ्वी विक्रम सेन ने भाजपा पर भेदभाव का रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. उनका मानना है कि वह पिछले तीन सालों से भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन जब पीठ थपथपाने की बारी आई तो ऐन मौके पर बीजेपी ने उन्हें धोखा दे दिया. जिसके चलते अब पृथ्वी आजाद प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में है.
ससुर-दामाद आमने सामने
उधर, सोलन विधानसभा क्षेत्र में भी ससुर दामाद आमने सामने है. निवर्तमान विधायक व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल कांग्रेस प्रत्याशी है, तो इनके दामाद डॉक्टरी छोड़कर भाजपा के प्रत्याशी बने हैं. सुसर-दामाद के आमने सामने होने से यहां भी टक्कर बराबरी की मानी जा रही है, घरों के टिकट का बंटवारा होगा सो अलग.
शांडिल के दामाद राजेश कश्यप आईजीएमसी में मेडिसिन विभाग में कार्यरत थे, चुनाव लड़ने के लिए वहाँ से त्यागपत्र दे दिया है. मेडिकल कॉलेज की चिकित्सक एसोसिएशन का भी वह नेतृत्व कर चुके है. बहरहाल इस हल्के से मुकाबला बड़ा रोचक है. देखना होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है, सुसर या दामाद.
टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय
शिमला शहर में कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज हरीश जनारथा भी बतौर आजाद उम्मीदवार चुनावी मैदान में डटे है. पिछले विस चुनाव में उन्हें पार्टी की ओर से टिकट मिला था, मगर इस बार सीएम द्वारा पैरवी करने के बावजूद भी हाईकमान ने इन्हें नापंसद किया.
फिर क्या था इन्होने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय ले लिया. बताया तो यह भी जा रहा है कि इस तरह से बगावत करने के लिए इन्हें ऊपर से भी इशारा है. यहां से कांग्रेस ने सुक्खू गुट के माने जाने वाले हरभजन सिंह भज्जी को टिकट दिया गया है, जो पूर्व में भी विधायक रहे हैं. जबकि भाजपा से निवर्तमान विधायक सुरेश भारद्वाज और माकपा से संजय चौहान जो प्रत्यक्ष चुनाव से नगर निगम के महापौर चुन कर आए थे, उम्मीदरवार हैं.
ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस से बगावत कर आजाद प्रत्याशी व माकपा प्रत्याशी के मैदान में होने से कांग्रेस के समीकरण बिगड़ेंगे और जाहिर है भाजपा को इसका पूरा लाभ मिलेगा.