
नई दिल्ली. अभी कुछ दिन पहले हरियाणा सरकार ने एक प्रस्ताव को सैद्धांन्तिक मंजूरी जिसमें पुरुषों और महिला उम्मीदवारों के लिये पंचायत चुनावों में 50:50 फीसदी आरक्षण प्रदान करने की योजना है, जिसके तहत प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति के बाद महिला और पुरुष उम्मीदवारों के बीच सीटों की अदला-बदली की जाएगी.
क्या होगा बदलाव
इस कानून के पारित होने के बाद हरियाणा इस प्रकार के कानून को अपनाने वाला देश का पहला राज्य होगा. हरियाणा का यह फॉर्मूला सरपंचों और ग्राम वार्डों, खंड समितियों और जिला परिषदों के सदस्यों के पद पर लागू किया जाएगा. हरियाणा में नियम के लागू होने पर यदि किसी वार्ड या गांव की अध्यक्षता एक पुरुष द्वारा की जाती है, तो इसका प्रतिनिधित्व अगले कार्यकाल में एक महिला द्वारा किया जाएगा.
महिलाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करना उद्देश्य : उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला
उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य महिलाओं के लिये आरक्षण की व्यवस्था करना नहीं है, बल्कि इस विधेयक का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करना है. ज्ञात हो कि देश के राज्यों में महिलाओं को स्थानीय स्वशासन में 50 प्रतिशत का आरक्षण प्रदान किया गया है
क्या होगा लाभ
इस प्रकार की व्यवस्था का उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों के बीच अवसर की समानता सुनिश्चित करना है. लोकतंत्र का सही अर्थ होता है सार्थक भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही. जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन भागीदारी और जवाबदेही दोनों को सुनिश्चित करता है. स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह देश के आम नागरिकों के सबसे करीब होता है और इसलिये यह लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्षम होता है.
सही मायनों में स्थानीय सरकार का अर्थ है, स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन. यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि स्थानीय समस्याओं और जरूरतों की समझ केंद्रीय या राज्य सरकारों की अपेक्षा स्थानीय लोगों को अधिक होती है.
स्थानीय स्वशासन में कितनी है महिलाओं की भागीदारी
वर्ष 1992 में भारत सरकार ने शासन के विकेंद्रीकृत मॉडल (Decentralised System) को अपनाने तथा भागीदारी एवं समावेशन को मजबूत करने के लिये 73वें और 74वें संविधान संशोधन को पारित किया. इस संशोधन के माध्यम से महिलाओं तथा अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित लोगों के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य कर दिया गया.
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन में महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाने से संसद में भी उनके बेहतर प्रतिनिधित्त्व की संभावना बढ़ जाएगी, जो अब केवल 14 प्रतिशत (लोकसभा) है।
दो बच्चों की नीति
भारत के कई राज्यों (8) ने पंचायत के चुनाव लड़ने के लिये दो अथवा दो से कम बच्चों की नीति को सख्ती से लागू किया है, कई बार यह नीति स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़ने में महिलाओं के समक्ष बाधा उत्पन्न करती है.
ग्रामीण भारत की जड़ों में मौजूद जाति व्यवस्था महिलाओं खासतौर पर अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिये स्वतंत्र एवं प्रभावी रूप से कार्य करने में चुनौती खड़ी करती है.
प्रशासनिक तथा अन्य स्तरों पर महिला सहकर्मियों के प्रतिनिधित्त्व के अभाव के कारण भी महिलाओं को अपने रोजमर्रा के काम-काज में समस्याओं का सामना करना पड़ता है.