नई दिल्ली. ओडिशा में दो आदिम (बोंडा और दीदाई) जनजातियों के 6 सदस्यों के कोरोना से संक्रमित होने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने राज्य सरकार से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के अनुसार, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) के अंतर्गत वर्गीकृत दो आदिम जनजातियों के छह सदस्यों का इस तरह वायरस से संक्रमित होना एक ‘गंभीर चिंता का विषय’ है.
ओडिशा में 62 आदिवासी समूहों में से 13 को PVTGs के रूप में मान्यता
ओडिशा में 62 आदिवासी समूहों में से 13 को PVTGs के रूप में मान्यता प्रदान की गई है, जो कि देश में सबसे अधिक है. वर्तमान में ओडिशा में PVTGs से संबंधित 2.5 लाख की आबादी है, जो कि 11 जिलों के लगभग 1,429 गांवों में रहते हैं.

ज्ञात हो कि अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में बोंडा (Bonda) जनजाति का एक और दीदाई (Didayi) जनजाति के पांच सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे.
बोंडा मुंडा जातीय समूह हैं जो ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के तीन राज्यों के जंक्शन के पास दक्षिण-पश्चिम ओडिशा के मलकानगिरी जिले के अलग-अलग पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं.
आदिम जनजातियों में संक्रमण बड़ी चिंता का विषय
अधिकांश आदिम जनजाति के लोग ‘सामुदायिक जीवन’ जीते हैं और यदि उनमें से कोई भी व्यक्ति संक्रमित होता है तो सभी के बीच संक्रमण फैलने की संभावना काफी बढ़ जाती है, जिसके कारण जनजाति के लोगों पर विशेष ध्यान देना काफी आवश्यक हो जाता है.
पिछले 20-30 वर्षों में आदिम जनजातियों के लोगों के जीवन जीने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है, अब वे भी प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए राशन पर निर्भर हैं, हालांकि उनकी प्रतिरक्षा (Immunity) क्षमता अभी भी काफी कम है, जिसके कारण वे वायरस के प्रति काफी संवेदनशील हैं.
आदिम जनजाति की क्या है स्थिति
ओड़िशा सरकार की गरीबी और मानव विकास निगरानी एजेंसी (PHDMA) के अनुसार, राज्य में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) की स्वास्थ्य स्थिति विभिन्न कारकों जैसे- गरीबी, निरक्षरता, सुरक्षित पेयजल की कमी, कुपोषण, मातृत्त्व एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की खराब स्थिति, अंधविश्वास और निर्वनीकरण आदि के कारण काफी खस्ताहाल है. PHDMA के अनुसार, इस प्रकार के जनजाति समूहों में श्वसन समस्या, मलेरिया, पोषक तत्त्वों की कमी और त्वचा संक्रमण (Allergy) जैसे रोग काफी आम हैं.
आवश्यक न्यूनतम प्रशासनिक सेट-अप और बुनियादी ढांचे की भी कमी
ऐसे में विशेष रूप से कमजोर इन जनजातीय समूहों (PVTGs) के लोग किसी भी प्रकार के वायरस और महामारी के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं. दूरदराज के आवासीय क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के लोगों के पास आवश्यक न्यूनतम प्रशासनिक सेट-अप और बुनियादी ढांचे की भी कमी है.
कैसे संक्रमित हुए ये आदिवासी
पहले आदिम जनजातियों के लोग केवल अपने समुदाय और निवास स्थान तक हि सीमित रहते थे, पर बीते कुछ वर्षों में आजीविका के अवसरों की कमी के कारण अब लोगों ने अन्य जिलों में पलायन करना शुरू कर दिया है. हालांकि अभी भी ओडिशा की आदिम जनजातियों में प्रसारित संक्रमण का स्रोत ज्ञात नहीं हुआ है, किंतु अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में संक्रमण का स्रोत वही लोग हैं जो आजीविका की तलाश में किसी दूसरे स्थान पर गए थे.
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) क्या है
PVTGs (जिन्हें पूर्व में आदिम जनजातीय समूह (PTG) के रूप में जाना जाता था) भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला वर्गीकरण है जो विशेष रूप से निम्न विकास सूचकांकों वाले कुछ समुदायों की स्थितियों में सुधार को सक्षम करने के उद्देश्य से सृजित किया गया है.
ऐसे समूह की प्रमुख विशेषताओं में एक आदिम-कृषि प्रणाली का प्रचलन, शिकार और खाद्य संग्रहण का अभ्यास, शून्य या नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि, अन्य जनजातीय समूहों की तुलना में साक्षरता का अत्यंत निम्न स्तर और लिखित भाषा की अनुपस्थिति आदि शामिल हैं.
इसका सृजन ढेबर आयोग की रिपोर्ट (1960) के आधार पर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जनजातियों के भीतर भी विकास दर में काफी असमानता है.
चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान विकास के निचले स्तर पर मौजूद समूहों की पहचान करने के लिये अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक उप-श्रेणी बनाई गई थी. इस उप-श्रेणी को आदिम जनजाति समूह (PTG) कहा जाता था, जिसका नाम बदलकर बाद में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) कर दिया गया.