कुल्लू. लाहौल स्पीति के विभिन्न क्षेत्रों में हालड़ा महोत्सव मनाया गया. जनजातीय जिले में नए साल के आगमन पर इस उत्सव को मनाया जाता है. जानकारी के अनुसार यह त्योहार जनवरी के महीने में आता है और दो दिनों की अवधि के लिए मनाया जाने वाला हालड़ा बौद्ध धर्म ग्रंथ लोत्तो के हिसाब से मनाया जाता है.
यह महोत्सव धन की देवी ‘शिसकर अप’ को समर्पित रहता है. बौद्ध भिक्षु बड़े लामा द्वारा वास्तविक उत्सव की तिथि तय की जाती है. देवदार के लकड़ियों से अलग अलग मशाल तयार कर उस को जला कर हालड़ा का रूप दिया जाता है.
देर रात गांव के पुरूष इस हालड़ा के साथ एक जगह एकत्र होते हैं और पूजा कर नए साल का आगमन करते हैं.
आमतौर पर लाहौल वर्ष के इस समय के दौरान बर्फ से ढंका हुआ है. ऐसे में हलड़ा महोत्सव के कुछ प्रमुख आकर्षण परिवार के समारोहों, नृत्य रहता हैं. उत्सव यहां के दो नदियों चन्द्रा और भागा के साथ घाटियों में अधिक लोकप्रिय है. जो कि हर परिवार की समुदाय की एकता का प्रतीक भी माना जाता है.
गौर रहे कि इस महोत्सव की सबसे पहले चन्द्रा घाटी में आगाज़ हो चुका है. जबकि आने वाले 31 जनवरी को पट्टन घाटी में हालड़ा महोत्सव की धूम रहेगी. जिले से बाहर भी घाटी के बाशिंदों ने अलग अलग जगह हावड़ा महोत्सव को अपने लाहुली परंपरा के साथ धूमधाम से मनाया.