नई दिल्ली. आज 2 फरवरी है. देश के करोड़ों मनरेगा श्रमिकों के लिए एक ऐतिहासिक दिन. भारत की चौदहवीं लोक सभा द्वारा वर्ष 2005 में पारित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून की औपचारिक शुरूआत आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले के पंदलापल्ली ग्राम पंचायत से आज ही के दिन की गई थी. आज यह अधिनियम अपने शैशवकाल से किशोरावस्था की दहलीज पर आ पहुँचा है. ऐसे में झारखंड में मनरेगा की क्या स्थिति है बता रहे हैं झारखंड नरेगा वाच के संयोजक जेम्स हेरेज-
कम मजदूरी दर एवं विलंब से मजदूरी का भुगतान- वित्तीय वर्ष 2017-18 में केन्द्र सरकार ने राज्य की मनरेगा मजदूरी में मात्र 1 रूपये बढ़ाई थी। जबकि झारखण्ड राज्य में न्यूनतम मजदूरी 224 रूपये थी. वहीं स्थानीय स्तर पर दूसरे अन्य कार्यों में श्रमिकों को 200 रूपये से अधिक मजदूरी और वह भी समय मिल जाती है. जबकि मनरेगा योजनाओं मे प्रावधान के बावजूद 15 दिनों के भीतर मजदूरी नहीं दी जाती है. श्रमिकों को यह भी अधिकार है कि विलंबित मजदूरी भुगतान के लिए क्षतिपूर्त्ति राशि देना है, लेकिन राज्य सरकार ने इसे भी श्रमिकों को मुंह चिढ़ाने वाला नियम निर्धारित किये हैं.
नियम के अनुसार कहा गया है कि बकाया मजदूरी का 0.05 फीसदी के दर से क्षतिपूर्ति राशि भुगतान की जाएगी. आंकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल 18.76 लाख राशि क्षतिपूर्त्ति के रूप में भुगतान किया जाना था परन्तु अधिकारियों ने अपर्याप्त निधि और प्राकृतिक आपदा का हवाला देकर क्षतिपुर्त्ति राशि को खारित करते हुए महज 4.47 लाख रूपये को भुगतेय स्वीकार किया है लेकिन इसका भुगतान भी श्रमिकों को नहीं की जा रही है.
बेरोजगारी भत्ता का भुगतान पाना श्रमिकों के लिए सपना- संगठित और संघर्ष के बल पर पिछले 1 साल में राज्य के विभिन्न प्रखण्डों में 257 मजदूरों को करीब 3.39 लाख रूपये बेरोजगारी भत्ता का भुगतान किया गया है. वर्त्तमान में राज्य के अलग-अलग 8 प्रखण्डों के 606 श्रमिकों को करीब 3.58 लाख रूपये बेरोजगारी भत्ता भुगतान बकाया है. ये आंकड़े सरकारी वेबसाईट में दर्ज नहीं हैं बल्कि मजदूरों ने कार्य मांगआवेदन की पावती के आधार पर दावे किये हैं.
बेरोजगारी भत्ता दावा करने में सबसे मुश्किल ये है कि कार्य आवेदन के बदले पावती देने में आज भी सरकारी कर्मी श्रमिकों को फटकार देते हैं. वेबसाईट में भी बेरोजगारी भत्ता का लंबित भुगतान प्रति प्रखण्ड औसतन 3.48 लाख है. झारखण्ड राज्य बेरोजगारी भत्ता भुगतान नियमावली 2015 के कण्डिका संख्या 7 में कहा गया है कि बेरोजगारी भत्ता का भुगतान समुचित जाँचोपरान्त प्रथमतः झाखण्ड रोजगार गारंटी निधि में राज्यांश मद की उपलब्ध राशि से किया जाएगा. तत्पश्चात् इसकी प्रतिपुर्त्ति उत्तरदायी पदधारी/ पदधारियों या अभिकरण/अभिरणों से 30 दिनों में वसूली करते हुए कर ली जाएगी। लेकन राज्य सरकार अपने बनाये अधिनियम का भी पालन करने से बचती रही है.
आधार की अनिवार्यता एवं तकनीकों के अत्यधिक उपयोग ने बढ़ाई परेशानी-
भुगतान के निमित्त प्रत्येक श्रमिक का आधार सीडिंग अनिवार्य किया गया. राज्य की अधिकांश पंचायतों के आधार सीडिंग आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि पंचायतें 98 फीसदी से भी अधिक श्रमिकों का आधार सीडिंग कर चुके हैं. दूसरी गौर करने वाली बात ये भी है कि वैसे मजदूर जो 3 वर्षों से मनरेगा योजनाओं में कार्य नहीं कर रहे हैं, उनके रोजगार कार्ड सरकारी आदेशानुसार कम्प्यूटर में बैठकर रद्द कर दिये गये. इससे उन श्रमिकों को अधिक नुकसान हुआ है जो वास्तव में नरेगा में कार्य करते थे. लेकिन उनके रोजगार कार्ड में कार्य की प्रवृष्टि न कर बिचौलियों ने अपने लोगों के कार्ड में कार्य विवरणी दर्ज किये गये.
सरकार के इस फैसले से बिचौलिये परिवारों के मजदूर ही सक्रिय श्रमिक के श्रेणी में शामिल हो गये. जिन मजदूरों से बिचौलियों के स्वार्थ सिद्ध नहीं हुए उनके गाँव टोलों में रोजगार सेवक भी नहीं गए. परिणाम स्वरूप आधार कार्ड सीडिंग नहीं किये गये श्रमिकों के कार्ड रद्द कर दिये जाने से 100 फीसदी आधार सीडिंग का आंकड़ा आसानी से प्राप्त कर लिया गया.
मामले इतने गंभीर हैं कि विगत 1 वर्ष के अन्दर ही मनरेगा योजना की मजदूरी लंबित है और उनके रोजगार कार्डों को भी रद्द कर दिये गये है. बकि उस अनुपात में प्रखण्डों, ग्राम पंचायतों और बैंकां में तकनीक इस्तेमाल के लिए बुनियादी सुविधाओं पर सरकार का ध्यान नहीं है. उदाहरण के लिए जितने भी सुदूर प्रखण्ड हैं वहां नेट कनेक्टीविटी बिल्कुल न के बराबर है. कम्प्युटर ऑपरेटरों को कम्प्युटर से संबंधित सारे कार्यों के लिए 30 से 40 किलोमीटर सफर कर कार्य करना पड़ता है इसके लिए उन्हें किसी प्रकार का यात्रा भत्ता भुगतान नहीं किया जाता है.
अब तो मनरेगा की सारी गतिविधियाँ कम्प्युटर ऑपरेटरों तक ही सीमित हो गये हैं. योजना ग्राम से पारित होने के बाद एमआईएस प्रवृष्टि, तकनीकी व प्रशासनिक स्वीकृति के बाद प्रवृष्टि, जियो टैगिंग, डीपीआर फ्रिजिंग, रोजगार कार्ड आई0 डी0 सृजित करना, कार्य मांग की प्रवृष्टि, एम0 बी0 की प्रवृष्टि, कार्य दिवस दर्ज करना, भुगतान आदेश तैयार करना एवं डिजिटल हस्ताक्षर इन सभी कार्यों की जिम्मेवारी ऑपरेटरों पर निर्भर है.
विडम्बना यह है कि ऑपरेटरों द्वारा नियम विरूद्ध कार्य करने पर उनके ऊपर कोई प्रशासनिक कार्रवाई का निर्धारित नहीं है. फलतः ऐसे कर्मी दलालों से साठगाँठ और मोटी रकम लेकर फर्जी दस्तावेज के माध्यम से सरकारी राशि का गबन कर रहे हैं. नित नये तकनीकी शब्दों के इजाद से आम श्रमिकों की परेशानियाँ और बढ़ती जा रही हैं.
चालीस फीसदी मनरेगा कर्मियों के पद रिक्त- जहां आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल अनिवार्य किये जाने से मनरेगा योजना और श्रमिकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, वहीं मनरेगा कर्मियों का प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी से लेकर ग्राम रोजगार सेवक तक के 1482 पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं. जिन्हें पूर्ण किये वगैर योजनाओं के सफल क्रियान्वयन की उम्मीद नहीं की सकती.
आंकड़े बताते हैं कि राज्य भर में प्रखण्ड कार्यक्रम अधिकारी के कुल 413 पद स्वीकृत हैं, जिसमें 171 पद खाली हैं। सहायक अभियंताओं के 261 स्वीकृत पदों में सिर्फ 123 कार्यरत हैं. कनीय अभियंता के लिए 846 पद स्वीकृत हैं, जिसमें से मात्र 481 ही कार्यरत हैं. कम्प्यूटर सहायकों हेतु 261 में सिर्फ 1 कार्यरत हैं. इसी प्रकार लेखा सहायकों के 261 पद सृजित हैं और 157 कार्यरत हैं। ग्राम रोजगार सेवकों के 585 पद खाली पड़े हैं.
राज्य रोजगार गारंटी परिषद के निर्णयों पर सरकारी पहल नहीं-
मनरेगा अधिनियम की धारा 12 के तहत् झारखण्ड राज्य रोजगार गारंटी परिषद् गठित की गई है. जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री हैं. नियमानुसार उसे एक वर्ष में कम से कम 2 बैठकें अवश्य करनी चाहिए. लेकिन राज्य इस पर भी गंभीर नहीं है. पिछली बार आखरी बैठक 27 जुलाई 2016 को की गई थी. इसके पूर्व एक बैठक 26 सितंबर 2014 को की गई थी.
विगत् डेढ़ सालों से यह महत्वपूर्ण बैठक लंबित है. जो अंतिम बैठक सम्पन्न हई थी उसमें मजदूर हित में जो महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये थे, उनपर भी विभाग ने कोई पहल नहीं की। बैठक में निर्णय लिया गया था कि मनेरगा में महिला कार्डधारी (जिन्होंने वर्ष में कम से कम 15 दिनों का कार्य किया हो) को मातृत्व सुविधा के रूप में एक माह की मजदूरी पर होने वाले वित्तीय भार का आकलन करने तथा इस संबंध में विभिन्न विकल्पों के संबंध में अवगत कराने का निदेश दिया गया था.
जिसमें राज्य रोजगार गारंटी परिषदों का गठन, राज्य एवं जिलों के स्तर पर टोल फ्री नंबरों की स्थापना, मनरेगा लोकपालों की नियुक्ति, सावधिक सामाजिक संपरीक्षा, ग्राम पंचायत, प्रखण्ड एवं जिला मुख्यालयों में शिकायत कोषांगों की स्थापना, ऑनलाईन शिकायत दर्ज करने की सुविधा आदि माध्यमों का उल्लेख किया गया है.
धारा 23(6) में निर्दिष्ट अनुसार कार्यक्रम अधिकारी सात दिनों के भीतर ऐसी सभी शिकायतों का निपटान करेगा कार्यक्रम अधिकारी द्वारा 7 दिनों के भीतर किसी शिकायत का निपटान करने में असमर्थ रहने की स्थिति में इसे अधिनियम का उल्लंघन करना माना जाएगा तथा यह धारा 25 के तहत दण्डनीय है. इन प्रभावशाली प्रावधानों के बावजूद मजदूरों की शिकायतों पर कार्रवाई न होने के कारण स्थिति निराशाजनक होती जा रही है.