नई दिल्ली. केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की एक बड़ी और महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पिछले दो सालों में किसानों के दावों को खारिज करने के मामलों में करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा बीते शुक्रवार 5 फरवरी को तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद मानस रंजन भूनिया को जानकारी देते हुए ये आंकड़े पेश किए.
9.28 लाख दावों को खारिज
फसल बीमा योजना के तहत वर्ष 2017-18 में किसानों के 92,869 दावों को खारिज किया था. इसके अगले ही साल 2018-19 में आंकड़ा दोगुनी से भी ज्यादा हो गया है और इस दौरान 2.04 लाख दावों को खारिज किया गया.
साल 2019-20 तक किसानों के फसल बीमा दावों को खारिज करने में 900 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और इस बीच कुल नौ लाख अठाईस हजार आठ सौ सत्तर दावों को खारिज किया गया.
कब कितने दावे किये गये खारिज
वर्ष | बीमा कंपनियों द्वारा अस्वीकार किये गये दावे |
2017-18 | 92,869 |
2018-19 | 204,742 |
2019-20 | 928,870 |
सूखा या बाढ़ के चलते हुए नुकसान का दावा करने की जरूरत नहीं
कृषि मंत्री तोमर ने बताया कि यदि सूखा या बाढ़ के चलते व्यापक नुकसान होता है तो ऐसे में फसल बीमा योजना के तहत नुकसान का दावा करने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि इसका आकलन उत्पादन में हुए नुकसान के आधार पर कर लिया जाता है.
अगर किसी छोटे क्षेत्र में नुकसान होता है तो इसके लिए अलग से दावा करना पड़ता है
हालांकि अगर किसी छोटे क्षेत्र में नुकसान होता है तो इसके लिए अलग से दावा करना पड़ता है. इस तरह के नुकसान स्थानीय ओलावृष्टि, भूस्खलन, सैलाब, बादल फटना या प्राकृतिक आग के चलते होती है.
ऐसी स्थिति में किसान को संबंधित बीमा कंपनी, राज्य सरकार या वित्तीय संस्थाओं को इसकी जानकारी देनी होती है, जिसके बाद राज्य सरकार और बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति नुकसान का आकलन करती है.
देरी से बताने, नुकसान न होने आदि के आधार पर भी दावों को खारिज कर सकती हैं कंपनी
मंत्री ने बताया कि, ‘इसलिए बीमा कंपनियां विभिन्न आधार जैसे कि दावों के बारे में देरी से बताने, नुकसान न होने इत्यादि के आधार पर दावों को खारिज कर सकती हैं.’ मालूम हो कि देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसे कई मामले शामिल आए हैं, जहां किसानों ने शिकायत की है कि नुकसान होने के बावजूद बीमा कंपनियां उन्हें मुआवजा नहीं दे रही हैं.
क्या कहता है कानून
फसल बीमा योजना की गाइडलाइन्स के मुताबिक किसी सीजन की अंतिम कटाई पूरी हो जाने के दो महीने के भीतर दावों का निपटारा कर दिया जाना चाहिए. नियम के मुताबिक, यदि बीमा कंपनियां इस समयसीमा के भीतर किसानों को भुगतान नहीं करती हैं, तो उन्हें 12 फीसदी की दर से किसान को ब्याज का भुगतान भी करना पड़ेगा.