नई दिल्ली. आज 11 सितंबर है, एक ऐसा दिन जो दो विपरीत स्मृतियों को साथ लेकर आता है। पहला, 1893 में स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण, जिसने भारत की आध्यात्मिक विरासत और विश्व बंधुत्व का संदेश पूरे विश्व में पहुंचाया। दूसरा, 2001 का 9/11 हमला, जब आतंकवाद और कट्टरवाद ने मानवता के साझा आदर्शों को चुनौती दी।
इस खास दिन पर हमें एक ऐसे व्यक्ति का जन्मदिन भी याद आता है, जिन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत को अपने जीवन का आधार बनाया। वह हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत। इस वर्ष उनका 75वां जन्मदिन RSS के शताब्दी वर्ष में पड़ना विशेष रूप से गौरवपूर्ण है। मैं उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की शुभकामनाएँ देता हूँ।
परिवार से राष्ट्र निर्माण तक
मुझे मोहन जी के परिवार से गहरा जुड़ाव रहा है। उनके पिता स्वर्गीय मधुकरराव भागवत जी ने गुजरात में संघ कार्य को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण देखकर मोहन जी को भी समाज सेवा के लिए प्रेरणा मिली। उन्होंने 1970 के दशक में प्रचाकर के रूप में जीवन समर्पित किया। प्रचाकर का अर्थ केवल प्रचार करना नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए पूर्णकालिक सेवा देना है।
आपातकाल से लेकर जनसेवा तक
उनके संघ कार्य की शुरुआत आपातकाल जैसे कठिन समय में हुई। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए उन्होंने और हजारों स्वयंसेवकों ने सक्रिय भूमिका निभाई। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में काम करते हुए उन्होंने गरीबों की समस्याओं को समझा। आगे चलकर उन्होंने संगठन में अनेक ज़िम्मेदारियाँ निभाईं, जिसमें बिहार और अन्य क्षेत्रों में सेवा कार्य शामिल रहे।
नेतृत्व में निरंतरता और अनुकूलन
मोहन भागवत जी ने संगठन को समय के साथ बदलते समाज की आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किया। युवाओं से जुड़ने की उनकी सहज क्षमता, तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देना, और समाज की जमीनी समस्याओं पर काम करना उनकी खासियत रही है। कोविड महामारी के समय उन्होंने स्वयंसेवकों को सेवा कार्यों में सक्रिय रहने के लिए प्रेरित किया, जबकि सुरक्षा का ध्यान भी रखा गया।
मूल्य आधारित नेतृत्व
मोहन जी का नेतृत्व केवल संगठन चलाना नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत समर्पण, स्पष्ट उद्देश्य, और मातृभूमि के प्रति निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। वे सरल स्वभाव, सुनने की क्षमता, संवेदनशीलता और संवाद की शैली के लिए जाने जाते हैं। स्वच्छ भारत मिशन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों में उन्होंने समाज की सहभागिता बढ़ाई। “पंच परिवर्तन” जैसे सामाजिक सुधार के विचारों से उन्होंने परिवार, पर्यावरण, सामाजिक सौहार्द, राष्ट्र गौरव और नागरिक कर्तव्यों को प्रोत्साहित किया।
सांस्कृतिक विविधता के प्रबल समर्थक
वे “एक भारत श्रेष्ठ भारत” के प्रबल समर्थक हैं। भारत की विविधता और परंपराओं का सम्मान करते हुए उन्होंने समाज में एकता और समावेशन का संदेश दिया। संगीत, वादन और पढ़ाई में भी उनकी रुचि उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है।
RSS की शताब्दी और भविष्य की दिशा
इस वर्ष RSS का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। विजयादशमी, गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और संघ का शताब्दी समारोह एक ही दिन पड़ना ऐतिहासिक घटना है। ऐसे समय में मोहन जी का नेतृत्व संगठन को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का मार्ग दिखा रहा है।
अंत में, मोहन भागवत जी वसुधैव कुटुंबकम का जीवंत उदाहरण हैं। वे दिखाते हैं कि जब हम सीमाओं से ऊपर उठकर सबको अपना मानते हैं, तभी समाज में विश्वास, भाईचारा और समता मजबूत होती है। मैं उन्हें दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की शुभकामना देता हूँ।