नई दिल्ली. कविता मूलतः अपने समय के समाज और समाज में घट रही विविध घटनाओं का एक यथार्थ पुंज होती है जिसके माध्यम से हम सभी इन समाजिक घटनाओं से रू-ब-रू हो पाते हैं. कुछ इन्हीं विचारों को व्यक्त करती हुई कविताएं अरुणाभ सौरभ के यहाँ भी दिखाई पड़ती हैं.
साहित्यान्वेषण के तत्वाधान में गुरुवार को कविता पाठ का आयोजन किया गया। इस काव्य-गोष्ठी में कवि के रूप में प्रो. चंद्रदेव यादव तथा युवा कवि अरुणाभ सौरभ आमंत्रित थे. इसकी अध्यक्षता जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वरिष्ठ अध्यापक प्रो. महेंद्र पाल शर्मा जी ने किया. कार्यक्रम का आयोजन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के ऑडीटोरियम लॉन में किया गया.
अरुणाभ सौरभ की कविताओं में गाँव परिवेश का यथार्थ रूप तो मिलता ही है साथ ही साथ उसमें वास्तविक जीवन से संघर्ष, गरीबी का दंश और उसका प्रकोप, ग्रामीण जीवन की बिडंबनाओं का स्वरूप, मानव मूल्य, व्यक्ति के रहन-सहन का यथार्थ रूप भी दिखाई पड़ जाता है.
‘आद्यनायिका’ का 2-3, अभिसप्त, दिन ढलने तक, लाल किला के इर्द-गिर्द, , वो साला बिहारी, शहर भागलपुर के नाम एक कविता तथा मैथिली में रचित कविता हूक आदि इन्हीं भावों को निरूपित करती हैं.
इनकी हाल ही में प्रकाशित ‘पक्षधर’ में शामिल लंबी कविता ‘आद्यनायिका’ में उन्होंने ऐतिहासिक परिस्थितियों का चित्रण कर उसके माध्यम से वर्तमान समय और परिस्थितियों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है. यह समकालीन समय में अरुणाभ जी के कृतित्व की एक अलग पहचान को प्रदर्शित करता है.
वहीं चंद्रदेव यादव जी की कविताओं में पूर्वीय भारतीय ग्रामीण जीवन के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है. इनकी कविताओं की एक खास बात यह भी है कि भाषा में विविधता होने के साथ-साथ इनकी काव्य शैलियों में भी विविधता के रूप दिखाई पड़ती हैं जो एक सरल और सीधेपन को व्यक्त करते हुए ग्रामीण जीवन और वहाँ की परिस्थितियों का यथार्थ रूप प्रकट करते हैं.
इनकी कविताओं में ग्रामीण लोगों के बीच रोज की दिनचर्या, बोल-चाल, हाव-भाव, रहन-सहन का स्पष्ट चित्रण देखने को मिल जाता है. इनकी कविताएं अपने मूल स्वर के माध्यम से उन सभी परिस्थितियों को खोलती है जिसमें समाज, कहीं ना कहीं सामाजिक जकड़नों से जकड़ा हुआ दिखाई पड़ता है. यादव जी की कविताओं में ‘समय का फेर है’, ‘यही आदर्शवाद है भारत का’ तथा कविता-संग्रह ‘देश-राग’ में संकलित कविता कुशल क्षेम सब अच्छा, कहो रमयिक आदि प्रमुख हैं.
इसके अतिरिक्त महुआ सी रात (गीत), ठहर कर देखो, चौपाल से तहसीलों तक (लोकगीत), गाँव पूर के इहे निशानी (भोजपुरी गजल) तथा कुछ दोहा छंद आदि प्रमुख है जो इनके काव्य स्वरूप में इनकी विविध शैलियों के स्वरुप को स्पष्ट करती है.
किसी भी काव्य गोष्ठी की सफलता तभी मानी जा सकती है जब उसमें वाद-संवाद को प्रमुखता दी जाए. इस काव्य-पाठ में उपस्थित सभी लोगों ने कविताओं के ऊपर अपनी-अपनी सार्थक टिप्पणियों के माध्यम से सबको लाभान्वित किया. इस ओर सुशील कुमार द्विवेदी, अदनान कफ़ील, तहसीन मजहर, मोहसिना बानो, आज़म तथा सुधांशु आदि ने एक विशेष दृष्टि डालते हुए अरुणाभ तथा चंद्रदेव यादव जी की कविताएं पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए टिप्पणियों के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए.
इसी प्रक्रिया में आशीष मिश्र जी तथा आराधना जी ने भी अपने सार्थक टिप्पणियों के द्वारा सबका ज्ञानवर्धन किया। टिप्पणियों के माध्यम से यह बात सामने आई कि कविताएं अपने समय के सामाज का यथार्थ रूप प्रकट करने में भाषाई रूप से एक सशक्त माध्यम कही जा सकती है और इसका स्पष्ट स्वरूप अरुणाभ और यादव जी के कविताओं में देखने को मिल भी जाता है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. महेंद्र पाल शर्मा जी ने दोनों कवियों को बधाई देते हुए कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए साहित्यान्वेषण समूह को भी बधाईयां दीं. साथ ही वे इस मौके पर अपने विद्यार्थी जीवन के दिनों को याद करते हुए जे.एन.यू. में आए दिन होने वाले ऐसे कार्यक्रमों को याद भी किया, जो ज्ञानवर्धन और बौद्धिक विकाश के लिए उपयोगी कही जा सकती है.
शर्मा जी ने इस बात की ओर भी इशारा किया की आज जब हम एकेडमिक जीवन की व्यस्तताओं के चलते साहित्यिक जीवन को कम जी पाते हैं ऐसे में कविताएं ही ऐसी माध्यम हैं जो इस ओर हमारा ध्यानाकर्षित कर पुनः हमें साहित्य तथा समाज से जोड़ती हैं. अतः कविता का स्थान साहित्यिक रचनाओं में एक खास स्थान निर्धारित करती हैं. अंत में उन्होंने सार्थक टिप्पणी करने के लिए सभा में उपस्थित सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आगे भी ऐसे ही कार्यक्रमों के आयोजन की आशा करते हुए पुनः एक बार फिर से साहित्यान्वेषण समूह को ढेर सारी शुभकामनाएँ दीं.
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन मो. दानिश जी ने किया जिन्होंने सर्वप्रथम आमंत्रित दोनों कवियों तथा अध्यक्ष महोदय को धन्यवाद दिया तथा सभा में उपस्थित सभी लोगों को धन्यवाद देते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए वह अपने उद्देश्यों के प्रति सार्थक दृष्टि रखते हुए एकजुट होकर समूह को सफल बनाने के लिए साहित्यान्वेषण समूह तथा साहित्यान्वेषण के अध्यक्ष अब्दुल हासिम जी को धन्यवाद करते हुए सभा की समाप्ति की। इस कार्यक्रम का संचालन प्रेमदत्त पाण्डेय जी ने की.