शुरुआती मानव इतिहास से अब तक, अपराध, धर्म और पूंजी, राजनीति के सबसे पुराने सहचर रहे हैं। दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में धर्म और ज्योतिष तो राजनीति से शुरू से जुड़े रहे हैं, पर इन संबंधों ने नई ऊंचाइयां छुईं 90 के दशक में, जब तांत्रिक चंद्रास्वामी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनवाने की मुहिम के अगुवा बनके उभरे। तब से अब तक, 5 प्रधामंत्री आये और गए, पर राजनीति में ज्योतिष की पूछ बढ़ती गयी।
वैश्वीकरण के बाद फाइनेंस कैपिटल की आँधी में आकार लेने वाली नई जीवनशैली और उसका पल्लू थाम के आयी अनिश्चितता ने ज्योतिष को और मजबूत किया। देखते देखते ज्योतिषियों और भविष्यवाणियों, दैनिक-साप्ताहिक राशिफलों से अखबार, पत्रिकाएं और चैनलों के स्टूडियो पट गये। सेलिब्रिटी ज्योतिषियों और क्रिकेट मैच, चुनाव-सट्टे की भविष्यवाणी करने वालों की बाढ़ आ गयी। लेकिन समर्थकों की अंध श्रद्धा और विरोधियों के अंध विश्वास के आरोपों के बीच, भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य थाती के रूप में ज्योतिष पर कभी कोई सार्थक बात न हो पाई। इसके बावजूद, ज्योतिष के कुछ समर्पित अध्येताओं ने आज भी इस विधा को ज्यादा स्वीकार्य बनाने और इसकी कुछ लुप्त होती जा रही टेक्नीक्स को बचाये रखने का काम जारी रखा है। इन्ही में से एक हैं जिला मंडी, हिमाचल के जोगिंदर नगर कस्बे के डॉ. लेखराज शर्मा।
ज्योतिषियों का गांव कहे जाने वाले जिले के ही द्रुब्बल गांव में जन्मे लेखराज शर्मा का बचपन ज्योतिष के सिद्धांतों को सीखते बीता। पहले सरकारी स्कूल में मास्टरी की, फिर भारतीय सेना में धर्म शिक्षक के बतौर नौकरी करते हुए श्री लंका, अंगोला और भूटान में भी भटके, पर मन ज्योतिष में रमा रहा। प्रयाग विश्वविद्यालय और BHU से mphil और डॉक्टरेट करने वाले कैप्टेन शर्मा का पीएचडी टॉपिक था- ज्योतिष और रोग निर्धारण।
इस बारे में पूछे जाने पर वह बताते हैं– “भारतीय परंपरा में छह शास्त्र हैं, जिनमें आयुर्वेद, व्याकरण, छंद के साथ साथ ज्योतिष भी है। जीभ-आंखें और त्वचा से व्यक्ति के लक्षण तय करना सामुद्रिक शास्त्र का हिस्सा रहा है, और इस चीज़ का उपयोग आधुनिक चिकित्सा में भी रोग निर्धारण के लिए होता है। ऐसे में अगर ज्योतिष के पुराने सिद्धांतो से बीमारी और उसके कारण पता लगाए जा सकें तो बुराई क्या है?”
ज्योतिष पर ही बात करते हुए वे आगे कहते हैं- “भारतीय ज्योतिष के दो हिस्से हैं- गणित और फलित। ज्योतिषीय गणित विशुद्ध मैथमेटिक्स है, जिसे आर्यभट्ट, वराहमिहिर और लीलावती जैसे गणितज्ञों ने रचा है। ग्रहों की चाल, ग्रहण जैसी सटीक गणनाएं इसी से की जाती हैं। वहीं फलित आपका भूत-भविष्य और ग्रहों के आपपर पड़ने वाले प्रभाव बताता है। ऐसे में यदि फलित ज्योतिष से लोगों की असहमति हो सकती है, पर ज्योतिषीय गणित तो विज्ञान है, उससे असहमति क्यों?”
मैं सवाल करता हूँ- आप लोग आदमी के जन्म समय की कुंडली बनाके ही सारा भविष्य बताते हैं, पर कई लोगों को जन्म का समय ही नहीं पता होता, उसका क्या हल है?
डॉक्टर शर्मा बताते हैं कि आदमी के हाथ की रेखाओं से उसका जन्म समय, दिन और साल बताए जा सकते हैं। मेरे अविश्वास करने पर वह मेरे हाथ पर कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचते हैं, और कुछ गणनाएं करते हैं। दस मिनट बीतने से पहले ही वे न सिर्फ मेरा जन्म दिन, मिनट की हद तक सही जन्म समय और साल बता देते हैं, बल्कि मेरे माता-पिता और पत्नी के नाम के पहले अक्षर भी कागज़ पर लिख देते हैं। मैं आश्चर्य से वो कागज़ देखता हूँ तो कैप्टेन शर्मा मुस्कुराते हुए कहते हैं कि भारतीय ज्ञान परंपरा में ऐसी और भी कई गूढ़ विधाएं हैं।
साथ ही साथ उन्हें अफसोस भी है कि ये विधाएं लुप्त होती जा रही हैं, और हस्तरेखा से जन्म समय और कुंडली बनाने का काम देश भर में उनके अलावा और कोई नहीं कर पाता। इसीलिए वे कुछ छात्रों को ये विधा सिखा रहे हैं, ताकि उनके बाद ये लुप्त न हो जाये।
बात उनके राजनैतिक क्लाइंट्स की ओर मुड़ जाती है। डॉ शर्मा नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि देश के पांच राष्ट्रपति उनके पास ज्योतिषीय परामर्श लेने आ चुके हैं। दूसरे आने वालों में तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता, और मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री शामिल हैं।
इसके अलावा नौकरशाह, व्यवसायी, उद्योगपति और सिने जगत के कई लोग भी उनके दरवाज़े आ चुके हैं। पिछले महीने में उनका नाम एक बार फिर अखबारों में आया था जब मंडी की ही रहने वाली अभिनेत्री कंगना रानावत उनसे अपना भविष्य बंचवाने आयीं थीं।
मगर इसके बावजूद डॉ शर्मा चमक धमक से थोड़ा दूर ही रहना पसंद करते हैं। दिन भर परामर्श देकर नोटों का अंबार खड़ा करने वाले ज्योतिषियों के मुकाबले वे बेहद ‘चूज़ी’ हैं, और सुबह कुछ घंटों में दो चार लोगों की कुंडलियां बांच कर ही छुट्टी कर लेते हैं।
“फौज से रिटायरमेंट के बाद थोड़ा आलसी हो गया हूँ”, वे मुझे विदा करते हुए हंसते हुए कहते हैं।