साल 1953 जब टाटा की स्वामित्व वाली ‘एयर इंंडिया इंटरनेशनल’ को सरकार ने राष्ट्र की संपत्ति घोषित कर दी थी. इसके बाद इसका नाम पड़ा ‘एयर इंडिया’. छह दशकों तक राष्ट्र को सेवा देने के बाद सरकारी हवाई सेवा एयर इंडिया को निजी हाथोंं में बेचने की तैयारी चल रही है. इसके खरीदारों में सबसे बड़ा नाम आ रहा है इसके पुराने मालिक टाटा समूह का.
चिंता एयर इंडिया में काम करने वाले 21 हजार कर्मचारियों के भविष्य का भी है. कर्मियों ने अपने खर्च में कटौती कर तनख्वाह के रूपये अथवा यात्रा भत्ता की राशि का त्याग करने संबंधी पत्र एयर इंडिया के सीएमडी अश्वनी लोहानी को लिखा है. कर्मियों का कहना है कि उनकी इस छोटी सी मदद से यदि एयर इंडिया का भविष्य सुरक्षित रहता है तो यह उनके लिए खुशी की बात होगी.
14 सालों से एयर इंडिया में काम कर रहीं केबिन क्रू ध्यानंदा जोशी कंपनी के सीएमडी को लिखे पत्र में लिखती हैं, “कंपनी के कारण उन्हें रुतबा और इज्जत मिली है। यह हमेशा बरकरार रहे इसके लिए वह अपने गत दो वर्ष के यात्रा भत्ता की राशि दो लाख रुपये कंपनी को देना चाहती हैं।”
एक अन्य केबिन क्रू इंचार्ज सुरेंद्र सिंह ने एयर इंडिया को आर्थिक संकट से उबारने के लिए एक महीने की तनख्वाह देने का प्रस्ताव रखा है। उन्होनें अपने पत्र में लिखा “उन्हें इस बात का दुख है कि कंपनी कॉस्ट कटिंग कर कमाई बढ़ाने के प्रयास में लगी है। बावजूद इसके कंपनी के निजीकरण की बात की जा रही है।”
सरकारी विमान सेवा एयर इंडिया कई सालों से घाटे में चल रही है. उस पर 52,000 करोड़ रूपये से अधिक का कर्ज है. हालांकि सरकार ने मंजूर किए 30,000 करोड़ के बेल आउट पैकेज में 24,000 करोड़ रूपये पहले ही दे चुकी है. लेकिन एयर इंडिया की माली हालात सुधरती नजर नहीं आ रही है.
एयर इंडिया के निजीकरण और विनिवेश की बात कई सालों से चल रही है. चार साल पहले समूह टाटा समूह के वर्तमान अध्यक्ष रतन टाटा ने एयर इंडिया के निजीकरण होने पर खरीदने का मंशा जाहिर कर चुके हैं.
वहीं नीति आयोग को भी इसे पूरी तरह प्राइवेट कंपनियों को बेचने के सिवाय कोई चारा नजर नहीं आ रहा. केन्द्र सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है.
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू ने बीते 30 मई को कहा था कि एयर इंडिया की वित्तीय हालत को पटरी पर लाने के लिए कई उपाय मौजूद हैं. राजू ने कहा था कि नीति आयोग एयर इंडिया की माली हालत को सुधारने के लिए कई सुझाव पहले ही सौंप चुका है और उनपर गौर किया जा रहा है.
वहीं, जेटली ने एक इंटरव्यू में कहा था, “नागरिक उड्डयन देश में एक अच्छी सफल कहानी के रूप में तैयार होने जा रहा है. हमारे पास निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों के लिए बहुत कुछ है, जो भारत में सक्षमतापूर्वक एयरलाइन चला रहे हैं.”
खबर आ रही है कि निजीकरण या विनिवेश करने को लेकर सरकार की टाटा समूह के साथ अनौपचारिक बैठक हो चुकी है. टाटा समूह सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर ‘विस्तारा’ और मलेशिया की एयर एशिया के साथ मिलकर ‘एयर एशिया इंडिया’ की सस्ती विमान सेवा पहले से दे रही है.
एयर इंडिया के पास अकूत परिसंपत्तियां हैं. जिनमें 140 छोटे-बड़े विमान शामिल हैं. सरकार की मंशा उसे बेच कर फायदा कमाना है वहीं प्राइवेट कंपनियां इनपर मालिकाना हक हासिल करने के लिए नजर गड़ाये हुए हैं.
सरकार दो विकल्पों पर विचार कर रही है. पहला कि एयर इंडिया में 51 फीसदी स्टेक सरकार के पास रहे, 49 फीसदी प्राइवेट कंपनी को दिए जाएं. या नीति आयोग के प्रस्ताव पर विचार करते हुए एयर इंडिया को किसी प्राइवेट कंपनी के हाथों बेच दिया जाए.
एयर इंडिया की स्थापना जेआरडी टाटा ने 1932 में की थी. 1948 में इसका नाम एयर इंडिया इंटरनेशनल कर दिया गया. छह दशकों के बाद एयर इंडिया की ‘घर वापसी’ की तैयारी चल रही है.