शिमला. हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है. अब हिमाचल में पर्यटन सीजन शुरू वाला है, यहां कोई अपने परिवार के साथ वादियों में घूमेगा आएगा या कोई नया जोड़ा माल रोड की सड़कों पर एक दूसरे के हाथों में डाले मौसम का मजा लेगा. ऐसे में टॉय ट्रेन की बात न हो तो कैसे हो सकता है.
कालका शिमला रेलवे से सफर का अपना ही एक मजा है. ऐसे में जब घुमावदार मोड़ से प्रकृति व पहाड़ियों को नजदीक से निहारने का मौका जो मिलता है, इन्ही यादगार लम्हों को पर्यटक भी अपना बनाना चाहेंगे. इसलिए पर्यटकों की सर्दियों के पर्यटन सीजन में टॉय ट्रेन से शिमला पहुंचने की दिली तमन्ना रहती है.
क्रिसमस व न्यू इयर में शिमला में उमड़ने वाली पर्यटकों भीड़ के लिए रेलवे प्रबंधन भी खास इंतजाम करेगा
इसी तमन्ना को पूरा करने के लिए खासतौर पर क्रिसमस व न्यू इयर में शिमला में उमड़ने वाली पर्यटकों भीड़ के लिए रेलवे प्रबंधन भी खास इंतजाम करेगा. कालका से शिमला चलने वाली हर दिन की पांच शेड्यूल रेल जब सैकड़ों की संख्या में उमड़ने वाले पर्यटकों के लिए पैक हो जाएगी, तो रेलवे हॉलिडे स्पेशल अतिरिक्त रेलगाड़ी चलाएगा. हालांकि अभी कालका शिमला के लिए शेड्यूल पांच रेल ही चल रही है. दिसंबर आखिरी व जनवरी माह के शुरुआत में पर्यटकों की वेटिंग को देखते हुए रेलवे प्रबंधन हॉलिडे स्पेशल चलाने की तैयारी में है.
कालका-शिमला क्यों है खास आइये आपको बताते है.
शिमला के रेलवे से जोड़ने का प्रस्ताव नवंबर, 1847 में प्रस्तुत किया गया, जो भारतीय महाद्वीप में मुंबई थाने के मध्य प्रारंभ प्रथम रेलगाड़ी से भी छह साल पहले दिया गया था. इस पूर्वानुमान के दो दशक के भीतर शिमला को सरकारी तौर पर ब्रिटिश इंडिया की ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित किया गया.
क्षेत्र में टेलीग्राफ सुविधा पहुंचने के साथ गर्मियों के दौरान लगभग एक चौथाई आबादी इस छोटे शहर की तरफ रुख करने लगी. 19वीं शताब्दी के अंतिम दौर में इस लाइन का कार्य जब आरंभ हुआ, विश्व के इस क्षेत्र के साधन संपन्न लोगों के लिए रेल यात्रा का आकर्षण निरंतर बढ़ता गया. कालका-शिमला रेलवे का स्वतंत्र प्रबंधन 1926 तक उत्तर पश्चिम रेलवे कार्यालय लाहौर से किया गया. इसके बाद प्रबंधन दिल्ली मंडल को स्थानांतरित कर दिया गया. जुलाई 1987 से इसका प्रबंधन उत्तर रेलवे का अंबाला मंडल कर रहा है.
ब्रिटिश शासन की ग्रीष्म कालीन राजधानी को कालका से जोड़ने के लिए 1896 में दिल्ली की अंबाला कंपनी को इस रेलमार्ग के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई. समुद्र तल से 656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालका रेलवे स्टेशन को छोड़ने के बाद रेल शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए 2076 मीटर उपर स्थित शिमला तक जाती है. इस मार्ग पर 919 घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर रेल 48 डिग्री के कोण पर घूमती है.
छड़ी व परछाई के बूते भलकू ने किया लाइन का सर्वेक्षण
कालका- शिमला लाइन पर निर्मित सुरंगें व पुल इसे और अधिक महत्व देते है. सभी सुरंगें 1900 और 1903 के बीच बनी है. बड़ोग सुरंग एक किमी से अधिक लंबी है। इसके पीछे भी रोचक कहानी है. अंग्रेजों ने इस ट्रेक पर जब काम शुरू किया तो एक स्थान पर बड़ी पहाड़ी की वजह से दिक्कतें आने लगी. हालात यह बन गए कि अंग्रेजों ने ट्रैक को शिमला तक पहुंचाने का काम बीच में छोड़ने का मन बना लिया. फिर अंग्रेज इंजीनियर कर्नल एस बड़ोग ने निर्णय लिया कि पहाड़ी के दोनों और से एक साथ खोदाई की जाएगी. फिर एक स्थान पर दोनों तरफ की सुरंगों के सिरे मिल जाएंगे. काम आसानी व कम समय में पूरा हो जाएगा.
इसलिए अपने आपको गोली मार दी गोली
बड़ोग अपनी गणनाओं के आधार पर मजदूरों को खोदाई के दिश निर्देश देते रहे, लेकिन योजना विफल हो गई और छोर आपस में नहीं मिल पाए. इंजीनियर कर्नल बड़ोग को जिम्मेदार ठहराकर उन्हें दंड स्वरूप एक रुपये जुर्माना लिया जाता था. असफलता से हतोत्साहित होकर बड़ोग ने उसी अधूरी सुरंग के अंदर जाकर पहले पालतू कुत्ते के बाद में अपने आपको गोली मार दी.
इस स्थान, स्टेशन और गांव का नाम बड़ोग रखा गया. वर्तमान सुरंग से करीब एक किमी उपर घने ओक एवं पाइन से घिरी बड़ोग की आत्महत्या के बाद नई सुरंग उसी पहाड़ी पर एक किमी दूर मुख्य अभियंता एचएस हैरिंगटन की देखरेख में बनाई गई. एक स्थानीय संत बाबा भलकू का कालका- शिमला के संदर्भ में विशेष योगदान रहा है. जहां पर भी ब्रिटिश इंजीनियरों को लाइन बनाने में कठिनाई आई, वहां बाबा भलकू ने मार्गदर्शन कर वास्तविक रूप दिया.
2008 में मिला विश्व धरोहर का दर्जा
गिनीज बूुक आॅफ रेल फैक्ट्स एंड फीट ने कालका- शिमला को भारत में छोटी लाइन की महानतम इंजीनिरिंग के रूप में रिकाॅर्ड किया है. 103 सुरंगें वर्तमान में जो 102 है और आठ सौ पुलों का तीन साल में निर्माण करना और वह भी उबड़ खाबड़ और प्रतिकूल भूमि में कोई आसान कार्य नहीं था. सौ साल से अधिक पुरानी 95 68 किमी लंबी एतिहासिक लाइन को लोक यातायात के लिए नौ नवंबर 1903 को खोला गया था. 10 जुलाई 2008 को इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया और भारत की पर्वतीय रेलवे के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया.
अभी भी देखी जा सकती है मोघलपुरा में बनी रेल
जिस समय हिंदुस्तान व पाकिस्तान एक ही थे तो मोघलपुरा में रेल बनती थी. नट बोल्ट से बनी यह रेल अब भी शिमला ट्रेक बाबा भलकू संगहालय के बाहर देखी जा सकती है. वर्तमान में पाकिस्तान के लाहौर में स्थित मोघलपुरा में 1934 में बनी ट्रेन अब भी यहीं है. अब इन्हीं रेलगाड़ी को आधुनिक स्वरूप मिल गया है, नट बोल्ट की जगह जिनके पुर्जे बेल्डिंग से जोड़े गए है.