जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने नॉन स्टेट सर्विसेज से आईएएस बनाये जाने पर रोक लगा दी है. इसे लेकर याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर और तनवीर अहमद ने न्यायालय के समक्ष बहस की है. याचिका के लंबित रहने के दौरान राज्य सरकार द्वारा 17 फरवरी 2023 को पत्र जारी कर समस्त विभागों से इस वर्ष भी आवेदन माँगे हैं.
विशेष परिस्थितियों में ही हो सकती है अन्य सेवाओं से IAS की भर्ती
इस कारण स्थगन प्रार्थना पत्र पेश किया गया और कहा कि नॉन स्टेट सिविल सर्विसेज ऑफिसर्स जो आईएएस बने हैं उनको रिप्लेस करने का नियम में कोई प्रावधान नहीं है. जो हो रहा है वो नियमानुसार नहीं है. क्योंकि, केवल विशेष परिस्थितियों में ही ऐसा किया जा सकता है. अपवाद कभी भी नियमित भर्ती का तरीका नहीं माना जा सकता. तनवीर अहमद ने बताया कि राजस्थान सरकार ने मनमाने तरीके से यह मान लिया है कि नॉन स्टेट सिविल सर्विसेज के अधिकारियों का भी एक रिजर्व कोटा है.
नियम के अनुसार जो होना है वो नहीं हो रहा है
इसमें नियम के अनुसार जो होना है वो नहीं हो रहा है. ऑल इंडिया सर्विस एक्ट और उसके अधीन बने नियम और विनियम के तहत 66.67 प्रतिशत सीधी भर्ती से आईएएएस और 33.33 प्रतिशत राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों में से प्रमोशन द्वारा भरे जाने का प्रावधान है. इसके साथ ही साथ यह प्रावधान है कि विशेष परिस्थिति होने पर इस 33.33 प्रतिशत का 15 प्रतिशत तक अन्य सेवा के अधिकारियों से भरा जा सकता है.
सरकार इसे रिजर्व कोटा किस आधार पर मान रही- हाईकोर्ट
राजस्थान सरकार ने मनमाने तरीके से हर वर्ष नॉन स्टेट सिविल सर्विसेज के अधिकारियों से भरे जाने की परंपरा बना ली है और यह मान लिया है की 33.33 प्रतिशत का 15 प्रतिशत तो नॉन स्टेट सिविल सर्विस के अधिकारियों से भरा ही जाना है और हर बार अधिकतम सीमा तक भरा जाना है. बताया गया है कि इस प्रकार से जो सामान्य नियम है उसका उल्लंघन कर के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिये निर्धारित पदों पर अतिक्रमण कर राज्य के प्रशासनिक सेवा से इतर अधिकारियों को आईएएएस बनाया जा रहा है.
अगले सप्ताह होगी सुनवाई
न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और प्रवीर भटनागर की खण्डपीठ ने ये मौखिक टिप्पणी भी की है कि राज्य सरकार इसे एक रिजर्व कोटा किस आधार पर मान रही है, जबकि नियम ऐसा नहीं कहते कि राज्य सरकार अपनी मर्जी से नया नियम सप्लान्ट नहीं कर सकती. कभी कभार अपवाद स्वरूप ऐसा किया जा सकता है लेकिन हर वर्ष ऐसा किया जाना ठीक नहीं है.
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता के अनुरोध पर एक सप्ताह का समय कोर्ट को संतुष्ट करने के लिए दिया गया है. लेकिन तब तक स्क्रीनिंग कमेटी की अनुशंसा पर कोई कार्यवाही किए जाने पर रोक लगा दी गई है. अब मामले में सुनवाई अगले सप्ताह में होगी.