नई दिल्ली. Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) के स्थापना शताब्दी वर्ष पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में सरसंघचालक Mohan Bhagwat ने हिंदुत्व की अवधारणा को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व किसी संप्रदाय की संकीर्ण परिभाषा नहीं, बल्कि Inclusiveness और Indian Culture का प्रतीक है। भागवत ने जोर देकर कहा कि जो सब धर्मों का सम्मान करे, वही हिंदू कहलाने योग्य है।
हिंदू समाज सिर्फ एक संप्रदाय नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा है
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने RSS Founder Dr. Keshav Baliram Hedgewar को याद किया और बताया कि 1925 में विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन करना था। उन्होंने कहा कि Hindu Samaj का मतलब केवल एक धार्मिक समूह नहीं, बल्कि वह सांस्कृतिक विरासत है जो सभी धर्मों को सम्मान देती है।
हिंदुत्व का अर्थ है समावेशिता
भागवत ने कहा कि Hindutva भारत की मातृभूमि के प्रति समर्पण और भक्ति का भाव है। उन्होंने समझाया कि Hindu शब्द का अर्थ Inclusive है, जो विविधता में एकता को स्वीकार करता है। उनके अनुसार भारत के लोगों का DNA पिछले 40,000 वर्षों से एक ही है। हमारी संस्कृति “Unity in Diversity” पर आधारित है। किसी व्यक्ति को यदि हिंदू कहलाना पसंद नहीं तो वह खुद को Hindavi या Bhartiya कह सकता है।भागवत ने साफ किया कि संघ का मकसद किसी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ भावना पैदा करना नहीं है, बल्कि समाज को संगठित करना है।
संघ की सोच: सबको जोड़ना, सबका विकास
RSS प्रमुख ने स्वयंसेवकों के समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि उनका संघ से जुड़ाव जन्म-जन्मांतर का रिश्ता है। उन्होंने कहा कि समाज में विभिन्न विचारधाराएं जरूरी हैं, क्योंकि सहमति और प्रगति इन्हीं से निकलती है। भागवत ने कहा कि देश का जिम्मा हम सबका है। जैसे समाज होगा, वैसे ही हमारे नेता और प्रतिनिधि होंगे। हमें खुद को बेहतर बनाना है।
Hindu Rashtra की अवधारणा पर जवाब
Hindu Rashtra पर उठने वाले सवालों के बीच उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्र का अर्थ केवल Nation-State नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और समावेशी विचार है। RSS का उद्देश्य समाज को एकजुट करना और मानव जीवन को बेहतर बनाना है। यह समारोह संघ की शताब्दी वर्षगांठ का हिस्सा था, जिसमें देशभर से स्वयंसेवक और समर्थक शामिल हुए।
