नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को मान्यता देने की याचिका के साथ सुनवाई के लिए एनसीपीसीआर ने भी अपनी याचिका लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के खिलाफ NCPCR भी कोर्ट पहुंचा है.
NCPCR, गुजरात, एमपी सरकारें भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं
NCPCR ने कहा है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. NCPCR ने कहा है कि समान लिंग वाले अभिभावक द्वारा पाले गए बच्चों की पहचान की समझ को प्रभावित कर सकते है. इन बच्चों का एक्सपोजर सीमित रहेगा और उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा.
गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली सरकार के बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं के साथ सुनवाई की मांग की है. डीसीपीसीआर ने कहा है कि समलैंगिक जोड़ों को भी बच्चे गोद लेने की अनुमति मिलनी चाहिए. इसके लिए याचिका में अलग-अलग तर्क दिए गए हैं. इसमें कहा गया है कि विषमलिंगी जोड़ों की तरह ही समलैंगिक जोड़े भी अच्छे या बुरे अभिवावक बन सकते हैं. इनका तर्क है कि दुनिया के 50 से ज्यादा देश समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की इजाजत देते हैं. साथ ही इन लोगों का कहना है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों के बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास पर असर पड़ता है.
कोर्ट में दायर याचिका में कानूनी समस्याओं पर भी दलील रखी गई है. समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से मौजूदा कानूनों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. मौजूदा गोद लेने के कानून पुरानी मान्यताओं और धारणाओं पर आधारित हैं. वर्तमान समय से उनका नाता नहीं है. समलैंगिक जोड़ों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होता है, ऐसे में अलगाव के वक्त गुजारा भत्ता तय करने, बच्चे के कस्टडी लेने में पति पत्नी वाला विवाद नहीं रहेगा.
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की याचिकाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की आपत्ति जताने वाली अर्जी पर सुनवाई को तैयार हो गया है. एनसीपीसीआर के साथ अब गुजरात, मध्य प्रदेश सरकारों ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. अब केंद्र, गुजरात, एमपी और NCPCR ने मंगलवार को अर्जियों पर भी सुनवाई की मांग की है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जता दी है. इन सभी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि ये संसद का अधिकार क्षेत्र है न कि सुप्रीम कोर्ट का.