शिलाई. उपमंडल शिलाई में शामलाती जमीन इस बार गर्मागर्म चुनावी मुद्दा बनने जा रही है. वर्ष-2001 में लौटाई गई जमीनों का सरकार ने दोबारा अधिग्रहण कर लिया जो किसानों की नाराजगी की वजह है.
पूरा मामला
विभागीय सूत्रों के अनुसार, 30 जून 2016 को शिलाई उपमंडलाधिकारी के यहां एक केस दर्ज किया गया. इसमें शामलाती जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराकर भूमिहीनों में बराबर बांटने की मांग की गई. लेकिन फाइल रजिस्टर होते ही सरकार व सरकार के अधिकारियों ने स्थानीय लोगाें द्वारा दी गई अपील ही नहीं बल्कि कागजात में दी गई अपील के अक्षर भी बदल दिए. 29 अक्टूबर 2016 को आए फैसले में किसानों से 104143 बीघा जमीन सरकार ने वापस ले ली.
प्रदेश सरकार ने कैबिनेट में लगाई आखिरी मुहर
उपमंडलीय अधिकारी का फैसला आने के बाद 11 महीने तक विभाग इसकी कॉपी सार्वजनिक नहीं कर सका. गहनता से जांचा गया तो पता चला कि केस फाइनल होने के बाद फाइल प्रदेश सरकार के पास भेजा गया जहां पर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में इस फैसले पर मुहर लगा दी.
भाजपा सरकार ने किया था जमीन को किसानों के नाम
प्रदेश सरकार ने 70 के दशक में शामलात भूमि पर अपना अधिकार जताया था जबकि 2001 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने जमीन किसानों को वापस कर दी. साथ ही कानून बनाया कि अगले 25 वर्षों तक कोई भी किसान इस जमीन को बेच नहीं सकेगा, न ही इसपर किसी प्रकार की रजिस्ट्री हो पाएगी.
खुद को छला हुआ महसूस कर रहे क्षेत्रीय लोग
विधानसभा के लोगों में कल्याण सिंह, दीपक सिंगटा, दिनेश कुमार, दौलत राम, सोहन सिंह, इन्दर सिंह, प्रकाश चंद, रमेश चंद, अमर सिंह, धनवीर सिंह, लाल सिंह, नेतर सिंह का कहना है कि प्रदेश सरकार के इस कदम से वह खुद को छला हुआ महसूस करते हैं.
उधर, पूरे मामले पर उपमंडलाधिकारी योगेश चौहान ने बताया कि उन्हें केस के बारे में मालूम नहीं है. मामला उनके कार्यकाल से पहले का है, फाइल देख कर ही बताया जा सकता है.