हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए टिकट चाहने वालों को फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है। तय करना मुश्किल है कि आखिर टिकट का असली दावेदार कौन है? एक ही सीट पर दर्जनों दावेदार हैं।
उम्मीद सभी को है कि टिकट उसी को मिले, गोटियां सभी फिट कर रहे हैं। कोई हिमाचल के आकाओं से तो कोई दिल्ली दरबार से। कोई रसूख से तो कोई जुगाड़ से। हर कोई खुद को दूसरों से ज्यादा ताकतवर और काबिल बताने में जुटा है। लेकिन टिकट तो आखिर एक को ही मिलना है और ऐसे में बाकी सब बगावत पर उतर गए तो समझो सूपड़ा साफ।
लेकिन कोई बात नहीं घर में जब बुजुर्ग, तजुर्बेवान मुखिया हो तो ऐसी मुश्किल की घड़ियों में वही ऐसे नुस्ख़े निकाल लेते हैं कि मुश्किलें खुद मुश्किल में पड़ जाती है। जी हां ये मुखिया हैं हिमाचल कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे। बताते हैं कि शिंदे ने टिकट के लिए एक नायाब नुस्खा दिया है। जिससे सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।
शिंदे का फार्मूला
फॉर्मूले के अनुसार आवेदन प्रक्रिया के पूर्ण होते ही पार्टी की एक कमेटी गठित की जाएगी जो विधानसभा वार सभी आवेदकों के आवेदन की स्क्रुटनी करेगी। इसी के साथ विधानसभा वार ही सभी आवेदकों को एक साथ बैठाकर किसी एक नाम पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। यदि ऐसा न हुआ तो इसके बाद जिन नेताओं का वजन होगा, जनता में अच्छी पैठ होगी, क्षेत्र में जिनका रसूख होगा, युवा और सशक्त होगा उस क्रम में एक सूची तैयार की जाएगी।
नंबर वन वाले दावेदार को टिकट मिलेगा तो नबर 2 को कवरिंग केंडिडेट बनाया जाएगा। यही नही नंबर 2 से लेकर वजनदार नेताओं को भी सत्ता में आने पर एडजस्ट किया जाएगा, इस बात का पूरा आश्वासन दिया जाएगा। किसी को बोर्ड-निगमों में तो किसी को संगठन में, लेकिन मलाई मिलेगी दमदार को। यदि यह फार्मूला सैट बैठा तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को लाभ मिलेगा और यदि ऐसा न हुआ तो आप सब नगर निगम शिमला चुनावों की स्थिति से तो वाकिफ ही हैं।
 
								 
         
         
         
        