नई दिल्ली. Election Commission of India ने स्पष्ट किया है कि Polling Booth CCTV Footage को सार्वजनिक करना मतदाता की privacy और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की integrity के लिए खतरा बन सकता है। आयोग ने यह बयान विपक्षी दलों की उस मांग के जवाब में दिया जिसमें उन्होंने booth-level video footage को आम जनता के लिए जारी करने की मांग की थी।
क्यों हो रही है Footage Release की मांग?
विपक्षी दलों का तर्क है कि CCTV या Webcasting फुटेज को सार्वजनिक करने से voting process transparency बढ़ेगी और लोगों का चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा मजबूत होगा। लेकिन आयोग का मानना है कि यह मांग legally inappropriate है और इससे मतदाता की governed secrecy भंग हो सकती है।
Election Commission का रुख – Privacy First
आयोग ने बताया कि अगर मतदान केंद्र की रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक किया गया, तो यह आसानी से ट्रैक किया जा सकता है कि किसने वोट डाला और किसने नहीं। इससे मतदाताओं पर राजनीतिक दबाव, discrimination या intimidation की संभावना बढ़ सकती है। संविधान के Article 21 में वर्णित Right to Privacy का उल्लंघन भी संभव है।
Electoral Footage को क्यों नहीं माना जाता Public Record?
EC ने साफ किया कि मतदान केंद्रों में CCTV और Webcast सिर्फ internal monitoring tools हैं। ये कोई mandatory legal requirement नहीं है और ना ही इसे RTI or public domain में साझा किया जा सकता है। रिकॉर्डिंग को केवल 45 दिन तक सुरक्षित रखा जाता है – जो election petition दाखिल करने की अधिकतम अवधि है। उसके बाद, यदि कोई चुनौती नहीं आती तो वीडियो डेटा को destroy कर दिया जाता है।
December 2023 में हुआ था नियमों में बदलाव
चुनाव संचालन नियम, 1961 के Rule 93 में दिसंबर 2023 में बदलाव किया गया था, ताकि electronic records misuse को रोका जा सके। अब Webcast Footage, CCTV Recording, और Candidate Video Material को केवल अधिकृत अधिकारियों या अदालतों के आदेश पर ही उपयोग में लाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर गलत इस्तेमाल के मामले बढ़े
EC के मुताबिक, बीते चुनावों में कुछ गैर-चुनावी संस्थाओं ने वीडियो क्लिप्स को edited and misleading formats में सोशल मीडिया पर अपलोड किया, जिससे election integrity पर सवाल खड़े हुए। इसी को देखते हुए चुनाव आयोग ने नीतियों की समीक्षा की है।
Voter Confidentiality है सर्वोपरि
अधिकारियों ने दोहराया कि मतदाता की confidentiality and privacy संविधान और सुप्रीम कोर्ट दोनों के अनुसार अति-आवश्यक है। कोई भी नीति जो इस गोपनीयता को नुकसान पहुंचाए, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “हमने कभी मतदाता की गोपनीयता पर समझौता नहीं किया है और न ही करेंगे।”