मशरूम सिटी और हिमाचल की औद्योगिक राजधानी के नाम से जाने जाने वाले सोलन जिले में यूँ तो कसौली और बरोग जैसे नामी हिल स्टेशन हैं, लेकिन दुनियाभर में सैलानियों के मानचित्र पर सोलन का एक और गाँव बहुत अहम जगह रखता है. सोलन-राजगढ़ रोड पर, ओच्घाट कसबे से दाहिने जाने पर दोलांजी का कदरन कम चर्चित इलाका आता है जहाँ की मेनरी मोनेस्ट्री दुनियाभर में बोन धर्म का सबसे बड़ा केंद्र है. मेनरी के मठाधीश लुन्तोक तेन्पाई न्यीमा इस समय बोन धर्म के वैश्विक धर्मगुरु हैं.

क्या है बोन धर्म
तिब्बत में बौद्ध धर्म भारत से गया, लगभग आठवी शताब्दी में. कुछ विद्वानों का मानना है कि बोन उससे पहले से ही तिब्बत में प्रचलित था, यानि यह तिब्बत का अपना स्थानीय धर्म है, जिसमें उस ज़माने में तंत्र और बलि जैसे कुछ तत्व भी थे. बौद्ध धर्म के आने के बाद जब राजकीय समर्थन उस ओर मुड़ गया और बोन धर्मावलम्बियों के साथ भेदभाव बरता जाने लगा तो उन्होंने बौद्ध धर्म की कुछ मान्यताएं और कर्मकांड अपना लिए जिससे यह बुधिस्म का की एक सम्प्रदाय लगने लगा. कालांतर में तिब्बती बौध परंपरा कई धाराओं में बंट गयी जिनमें से दलाई लामा का घेलुक सम्प्रदाय सबसे ज्यादा चर्चित हुआ, हालाँकि बोन को छोड़ भी दें तो घेलुक के अलावा न्यिंग मा, कान्ग्यु, शाक्या जैसे बौद्ध सम्प्रदाय भी तिब्बत में प्रचलित हैं.

तिब्बत में बोन धर्म के ऐतिहासिक प्रमाण ११वीं सदी से मिलते हैं, और १४वीं शताब्दी में धार्मिक पुनर्गठन के बाद यह अपने वर्तमान स्वरूप में आया. बोन मतावलंबियों के अनुसार उनका धर्म तोनपा शेनरब के द्वारा स्थापित किया गया था जो शाक्यमुनि गौतम से भी पहले के युग के बुद्ध थे. मेनरी का अर्थ होता है औषधियों का पर्वत और बोन धर्म के मूल विहार मेनरी मोनेस्ट्री की स्थापना भी सदियों पहले तिब्बत में हुई थी. चीनी कब्जे के बाद कई बोन धर्मावलम्बी भारत भाग आए और दोलांजी का मौजूदा विहार मूल मेनरी विहार के नाम पर फिर से बनाया गया, सन १९६९ में. यहाँ मौजूद युंगडुंग बोन पुस्तकालय भी दुनियाभर में बोन साहित्य का सबसे बड़ा संग्रह है.


कैसे शुरू हुई जीभ दिखाकर अभिवादन की परंपरा
18वीं शताब्दी में तिब्बत पर द्जुन्गर कबीलों का कब्ज़ा हो गया. द्जुन्गरों ने स्थानीय धार्मिक परम्पराओं का दमन शुरू किया और लामाओं और बोन धर्मावलम्बियों को पकड़ के जेलों में ठूंस दिया. उनका मानना था कि लगातार मन्त्र पढने से जीभ का रंग काला पड़ जाता है इसलिए द्जुन्गर अधिकारियों से मिलने आए हर व्यक्ति को अपनी जीभ दिखानी पड़ती थी, ताकि पहचान हो सके की वह लामा है या नहीं. कालांतर में लोगों के बीच यही अभिवादन का तरीका बन गया. आज भी तिब्बत में लोग एक दूसरे का अभिवादन जीभ दिखाकर ही करते हैं.
गेशे यानि धर्मशास्त्र में पीएचडी
मेनरी विहार बोन धर्म के अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र है जहाँ पढाई के साथ भिक्षुओं के रहने और खाने का भी इंतजाम होता है. न्यूनतम 12 और अधिकतम 16 वर्ष तक भिक्षुओं को धर्म, दर्शन, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष आदि की पढाई करायी जाती है जिसमें प्रवीणता प्राप्त करने पर ‘गेशे’ की उपाधि मिलती है जो पीएचडी के समकक्ष मानी जाती है. पढाई के साथ साथ विहार के भिक्षु थांगका (कपडे पर बन्ने वाली पेंटिंग), बढईगिरी, अगरबत्ती बनाने जैसी रोजगारपरक कलाएं भी सीखते हैं. मौजूदा समय में विहार में 200 से ज्यादा भिक्षु हैं जिनमें मंगोलिया, म्यांमार, तिब्बत, नेपाल के भिक्षु भी शामिल हैं. इसके अलावा अमरीका और यूरोप से भी लोग बोन के आकर्षण में बंधकर यहाँ आते रहते हैं. अगर आप इत्मीनान और आत्मिक शांति की तलाश में हैं, तो पहाड़ियों की गोद में बसे मेनरी विहार में आपका स्वागत है.
