नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में 1,158 असिस्टेंट प्रोफेसर और पुस्तकालयाध्यक्षों की नियुक्ति को सोमवार को रद्द करते हुए कहा है कि भर्ती प्रक्रिया में पूरी तरह से मनमानी की गई थी। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की खंडपीठ के सितंबर 2024 के फैसले को पलट दिया, जिसने पहले इन नियुक्तियों को वैध ठहराया था।
प्रक्रिया अक्टूबर 2021 में शुरू हुई
यह भर्ती प्रक्रिया अक्टूबर 2021 में शुरू हुई थी, जब पंजाब के उच्च शिक्षा निदेशक ने विधानसभा चुनाव से पहले विभिन्न विषयों में असिस्टेंट प्रोफेसर और पुस्तकालयाध्यक्ष के पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगे थे। लेकिन इसके बाद कई उम्मीदवारों ने चयन प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए याचिकाएं दाखिल कीं, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यूजीसी जैसी संस्थाओं द्वारा निर्धारित चयन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और केवल बहुविकल्पीय प्रश्नों वाली लिखित परीक्षा के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करना उचित नहीं था। मौखिक परीक्षा को पूरी तरह समाप्त करना भी एक गंभीर त्रुटि थी, क्योंकि यह शिक्षकों की योग्यता के समग्र मूल्यांकन के लिए आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में अचानक बदलाव और अनियमितताएं न केवल मनमानी थीं, बल्कि उचित प्रक्रिया का उल्लंघन भी किया गया, जिससे चयन की गुणवत्ता प्रभावित हुई। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि लोक सेवा चयन में निष्पक्षता, पारदर्शिता और योग्यता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और सरकार द्वारा लिए गए फैसले तर्कसंगत होने चाहिए, न कि जल्दबाजी या मनमानी पर आधारित।
इस फैसले के बाद पंजाब में 1100 से अधिक नियुक्तियां रद्द हो गई हैं, और राज्य में भविष्य की भर्ती प्रक्रियाओं में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
