नई दिल्ली: नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने 1984 के भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने की मांग की थी. गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड से जुड़े इस मामले में 2010 में ही क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल हुई थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में ही फैसला सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए गुहार लगाई थी कि वह अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की उत्तराधिकारी फर्मों को अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपए देने का आदेश दे. केंद्र ने तर्क दिया था कि 1984 के गैस पीड़ितों को 1989 के समझौते के तहत 715 करोड़ रुपए का मुआवजा अपर्याप्त था. लेकिन कोर्ट ने केंद्र की इस याचिका को खारिज कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज
जज जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता. शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ितों के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल केंद्र सरकार लंबित दावों को पूरा करने के लिए करे
पीठ ने कहा, ‘‘ हम दो दशकों बाद इस मुद्दे को उठाने के केंद्र सरकार के किसी भी तर्क से संतुष्ट नहीं हैं. हमारा मानना है कि उपचारात्मक याचिकाओं पर विचार नहीं किया जा सकता है.’’ बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी भी शामिल हैं. पीठ ने मामले पर 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था.
घटना के बाद कंपनी ने पीड़ितों को 470 मिलियन अमेरीकी डॉलर का मुआवजा दिया था. पीड़ितों ने अधिक मुआवजा की मांग को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. केंद्र ने पीड़ितों को कंपनी से 7,844 करोड़ रुपए के अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने मुआवजा बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की थी.
वहीं, यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने कोर्ट में कहा था कि वो 1989 में हुए समझौते के अलावा भोपाल गैस पीड़ितों को एक भी पैसा और नहीं देंगे. इस याचिका पर 12 जनवरी को बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. मंगलवार को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है.