नई दिल्ली. ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स (Betting Apps Ban) के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और इस गंभीर विषय पर अपनी चिंता जताई। याचिका में कहा गया कि ये ऐप्स युवाओं को गुमराह कर रहे हैं, आत्महत्याओं का कारण बन रहे हैं और समाज में गंभीर सामाजिक व्यवधान पैदा कर रहे हैं।
जस्टिस सूर्यकांत की तीखी टिप्पणी: “कानून से सब नहीं रुकता”
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम मूल रूप से आपके साथ हैं, इसे रोका जाना चाहिए,लेकिन शायद आप इस गलतफहमी में हैं कि इसे कानून के ज़रिए रोका जा सकता है। ये ठीक वैसा ही है जैसे हम कानून के बावजूद लोगों को हत्या करने से नहीं रोक सकते। उन्होंने यह भी कहा कि इंटरनेट एक्सेस सबके पास है। माता-पिता एक टीवी देखते हैं, बच्चे दूसरे कमरे में मोबाईल देखते हैं, यह पूरी तरह एक सामाजिक विचलन (social deviation) बन चुका है। याचिकाकर्ता की अपील 1023 आत्महत्याएं बॉलीवुड-टॉलीवुड के सितारे भी शामिल हैं।
याचिकाकर्ता डॉ. केए पॉल ने कोर्ट से कहा कि तेलंगाना में 1023 आत्महत्याएं सट्टेबाजी ऐप्स की वजह से हुईं। लगभग 25 बॉलीवुड और टॉलीवुड के स्टार्स इन ऐप्स को प्रमोट कर रहे हैं। यह मामला सिर्फ पैसा कमाने का नहीं, युवाओं की ज़िंदगियों से खेलने का है।उन्होंने तुलना करते हुए कहा, जैसे सिगरेट पर चेतावनी होती है, वैसे ही सट्टेबाजी ऐप्स पर भी चेतावनी होनी चाहिए।
PIL में क्या है मांगें?
- भारत सरकार एक केंद्रीय कानून बनाए जो सभी ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी गतिविधियों को प्रतिबंधित या रेगुलेट करे।
- Google, Apple और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म से सभी illegal betting apps को हटाने का निर्देश दिया जाए।
- TRAI और MeitY को विदेशी सट्टेबाजी ऐप्स को ब्लॉक करने का आदेश मिले।
- ED और RBI को मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने का निर्देश दिया जाए।
- सुप्रीम कोर्ट ये घोषित करे कि ये ऐप्स गैम्बलिंग (gambling) की परिभाषा में आते हैं और इन पर केंद्रीय और राज्य कानूनों के तहत रोक लगे।
अदालत की अगली कार्रवाई क्या होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल:केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को याचिका की सॉफ्ट कॉपी भेजने के निर्देश दिए हैं। यदि आगे जरूरत पड़ी तो सभी राज्यों को नोटिस जारी किया जा सकता है।
क्या सिर्फ कानून काफी है?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि समस्या सिर्फ कानूनी नहीं, सामाजिक भी है।सवाल सिर्फ ऐप्स को बैन करने का नहीं, बल्कि समाज और परिवार के स्तर पर digital awareness और moral responsibility बढ़ाने का भी है।