नई दिल्ली. देशभर में तेजी से फैल रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ (Digital Arrest) घोटालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 27 अक्टूबर को सख्त रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि इन मामलों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपी जा सकती है, क्योंकि इस अपराध का फैलाव “वृहद और राष्ट्रव्यापी” है और इससे जनता का कानून-व्यवस्था पर भरोसा हिल गया है।
जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर ऐसे मामलों में दर्ज एफआईआर का ब्यौरा मांगा। अदालत ने यह कार्रवाई स्वतः संज्ञान (suo motu) में की, जब उसे एक बुजुर्ग महिला की शिकायत मिली — जिसे पुलिस अधिकारी बनकर ठगों ने वीडियो कॉल पर धमकाया और पैसे ठग लिए।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि “डिजिटल अरेस्ट घोटालों में पीड़ितों को झूठे वीडियो कॉल और फर्जी न्यायिक दस्तावेजों के ज़रिए पैसे ट्रांसफर करने पर मजबूर किया जा रहा है। यह अपराध का नया और खतरनाक रूप है, जो सीमाओं से परे जाकर समाज में भय पैदा कर रहा है।”
बेंच ने कहा, “इन मामलों की व्यापकता और पूरे देश में फैलाव को देखते हुए हम जांच CBI को सौंपने के पक्ष में हैं। अदालत इस जांच की प्रगति पर नजर रखेगी और आवश्यक निर्देश देती रहेगी।”
CBI से मांगा एक्शन प्लान
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो CBI की ओर से पेश हुए, ने अदालत को बताया कि कई साइबर अपराध म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से संचालित हो रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने CBI को निर्देश दिया कि वह एक विस्तृत कार्ययोजना (Action Plan) तैयार करे ताकि ऐसे गिरोहों के सरगनाओं को पकड़कर अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को ध्वस्त किया जा सके।
कोर्ट ने यह भी कहा कि CBI यदि चाहे तो बाहरी साइबर विशेषज्ञों की मदद लेकर अपनी जांच को और सशक्त बना सकती है, ताकि इस जटिल अपराध की गहराई तक पहुंचा जा सके।
हरियाणा केस से मिली थी शुरुआत
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने आदेश से जुड़ा है जिसमें 17 अक्टूबर को अदालत ने पहली बार डिजिटल अरेस्ट मामलों पर स्वतः संज्ञान लिया था। हरियाणा के अंबाला में एक बुजुर्ग दंपती को पुलिस और कोर्ट अधिकारी बनकर ठगों ने ऑनलाइन “गिरफ्तार” कर लिया था और उनसे ₹1.05 करोड़ की ठगी की थी।
अदालत ने इस घटना को “न्याय व्यवस्था में जनता के भरोसे पर निर्लज्ज हमला” बताया और कहा कि इसे किसी एक राज्य की पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। “ऐसे मामलों में केंद्र और राज्य एजेंसियों के समन्वय की आवश्यकता है ताकि इस संगठित आपराधिक नेटवर्क का पूरा पर्दाफाश हो सके।”
अगली सुनवाई 3 नवंबर को
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को करेगी, जिसमें CBI को अपना प्रस्तावित राष्ट्रीय जांच ढांचा (National Investigation Framework) पेश करना होगा। यह कदम भारत में पहली बार डिजिटल अपराधों के खिलाफ केंद्रीकृत राष्ट्रीय प्रतिक्रिया (Coordinated National Response) की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
