नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी बिल पर निर्णय देने के लिए अदालत कोई समय-सीमा (Timeline) तय नहीं कर सकती। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़ा है, जिनमें राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास बिलों को मंजूरी देने, रोकने या पुनर्विचार के लिए भेजने की शक्तियां निर्धारित हैं।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (Note: Checking – latest CJI is BR Gavai) की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा राष्ट्रपति और राज्यपाल को निर्णय लेने के लिए कोर्ट समय सीमा तय नहीं कर सकती । ऐसा करना संविधान के संघीय ढांचे (Federalism) के खिलाफ होगा। राज्यपाल अनुच्छेद 200 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना बिलों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। बेंच ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियां संविधान द्वारा नियंत्रित हैं, और वह बिलों पर मनमाने ढंग से देरी नहीं कर सकते, लेकिन कोर्ट हस्तक्षेप कर कोई कठोर समय-सीमा लागू भी नहीं कर पाएगी।
यह राय क्यों मांगी गई थी?
राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए एक Presidential Reference के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को यह राय देनी थी। यह संदर्भ उस समय आया जब: दो-न्यायाधीशों वाली बेंच ने तमिलनाडु के 10 बिलों पर राज्यपाल आर.एन. रवि की लंबी देरी को “अवैध और मनमाना” बताया था। उसी फैसले में कोर्ट ने 3 महीने की समय-सीमा तय कर दी थी कि दोबारा पारित किए गए बिलों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल को अनिवार्य रूप से निर्णय देना होगा।यही समय-सीमा संवैधानिक रूप से सही है या नहीं—यह स्पष्ट करने के लिए मामला बड़ी पीठ के पास भेजा गया।
सुप्रीम कोर्ट की विस्तृत टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि संविधान ने जानबूझकर राष्ट्रपति और राज्यपाल को समय-सीमा से मुक्त रखा है, ताकि वे विवेक का उपयोग कर सकें।
लेकिन यह विवेक पूर्ण नहीं है, इसलिए बिलों को अनिश्चित काल तक रोककर रखना उचित नहीं माना जाएगा।
अनुच्छेद 200 और 201 में निर्धारित प्रक्रियाएँ ही मार्गदर्शक होंगी।
संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 क्या कहते हैं?
अनुच्छेद 200 (Governor’s Assent to Bills)
राज्यपाल के पास 4 विकल्प होते हैं:
बिल को मंजूरी देना
बिल को रोके रखना (Withhold Assent)
बिल को राष्ट्रपति के पास भेजना
बिल को पुनर्विचार के लिए विधानसभा वापस भेजना
अनुच्छेद 201 (President’s Assent to Bills)
यदि बिल राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति —
इसे मंजूर कर सकते हैं
अस्वीकार कर सकते हैं
इसे राज्यों से संबंधित विशेष प्रतिबंधों के तहत रोक सकते हैं
इन अनुच्छेदों में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया।
फैसले का असर क्या होगा?
राज्यपालों द्वारा लंबे समय तक बिलों को रोकने पर राजनीतिक विवाद तो जारी रहेंगे, लेकिन कोर्ट ऐसे मामलों में कोई कठोर डेडलाइन नहीं लगाएगी। राज्यों को बिल पास करने के बाद राज्यपाल के साथ बेहतर समन्वय रखना होगा। संघीय संरचना और संवैधानिक प्रक्रियाओं की अहमियत और बढ़ेगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संघीय ढांचे, संवैधानिक संतुलन और विधायी प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाए रखने वाला है।
जहां एक तरफ यह राज्यपाल और राष्ट्रपति के विवेकाधिकार को बरकरार रखता है, वहीं यह स्पष्ट भी करता है कि इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
