नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगजनों के लिए लागू आरक्षण (Disability Quota) की व्यवस्था पर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि meritorious disabled candidates, जो सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों जितना प्रदर्शन करते हैं और merit list में स्थान हासिल कर लेते हैं, उन्हें आरक्षित श्रेणी में सीमित रखना अनुचित है। उन्हें सामान्य श्रेणी में शामिल कर equal opportunity दी जानी चाहिए।
यह व्यवस्था पहले से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि reservation policy में सुधार कर दिव्यांग अभ्यर्थियों के साथ भी यही न्याय किया जाए।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता का महत्वपूर्ण निर्देश
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि आरक्षण में upward mobility सुनिश्चित होनी चाहिए। इसका मतलब है कि यदि आरक्षित श्रेणी का कोई छात्र सामान्य श्रेणी के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे सामान्य श्रेणी का दर्जा मिलना चाहिए।
पीठ ने बताया कि यह नियम पहले से SC/ST reservation में लागू है और इसे दिव्यांग अभ्यर्थियों पर भी लागू किया जाना चाहिए ताकि उन्हें उचित अवसर मिल सके।
आरक्षण का उद्देश्य नहीं हो रहा पूरा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में मेधावी दिव्यांग अभ्यर्थियों को ऊपर उठने का मौका नहीं दिया जा रहा। यदि कोई दिव्यांग अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी के कट-ऑफ से अधिक अंक लाता है, तो भी वह अनिवार्य रूप से आरक्षित श्रेणी की सीट पर ही रहेगा। इससे कम अंक प्राप्त करने वाले अन्य दिव्यांगों को मौका मिल जाता है, जबकि प्रतिभाशाली अभ्यर्थी पीछे रह जाते हैं।
जस्टिस मेहता ने कहा, “यह स्थिति आरक्षण के मूल उद्देश्य को विफल करती है, जो कि समान अवसर सुनिश्चित करना है।”
संवैधानिक वादे का केंद्र बने दिव्यांगजन
अदालत ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों का एक बड़ा वर्ग ऐतिहासिक और सामाजिक असमानताओं के कारण अवसरों से वंचित रहा है। कई आर्थिक और संस्थागत बाधाओं ने उन्हें पीछे धकेला है। संविधान का उद्देश्य केवल औपचारिक समानता नहीं, बल्कि वास्तविक सहायता प्रदान करना है ताकि ये लोग अपने लिए तय सहायता का पूरा लाभ उठा सकें।
राज्य की कल्याणकारी योजनाओं का लक्ष्य उन बाधाओं को दूर करना होना चाहिए, ताकि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को आगे बढ़ने का मौका मिले।